Wednesday, June 04, 2014

युयुत्‍सा और निर्णायकता के साथ दार्शनिक गुरुत्‍व भी ज़रूरी है और सघन कलात्‍मक कल्‍पनाशीलता एवं भावप्रवणता भी!




--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

वस्‍तुगत जीवन से विचार और विचार से अभिव्‍यक्ति हमेशा पीछे रहती है। पदार्थ जबतक चेतना में परावर्तित होकर विचार बनता है, तबतक सतत् गतिमान पदार्थ बदल जाता है और विचार जबतक ठोस होकर भाषाई या अन्‍य कलात्‍मक-सिमैण्टिक अभिव्‍यक्ति में ढलता है, तबतक स्‍वयं विचार भी बदल जाता है। इसीलिए एक मौलिक विचार‍क या कलाकार को अपने कृतित्‍व में हरदम अधूरेपन का अहसास होता है और वह हमेशा असंतुष्‍ट रहता है। विचार हमेशा जीवन का पीछा करते रहते हैं और अभिवयक्ति विचार का पीछा करते रहते हैं।
पीछा करने की इस प्रक्रिया में विचारक और कलाकार जब जीवन की गतिरेखा और दिशा  को भाँप लेते हैं तो उसके भविष्‍य के बारे में भी कुछ सामान्‍य आकलन कर पाने, कुछ पूर्वानुमान लगा पाने में समर्थ हो जाते हैं। यह क्षमता जितनी बढ़ती जाती है, विचारक उतना ही अनुभववाद से मुक्‍त होता जाता है और कलाकार उतना ही प्रकृतिवाद से मुक्‍त होता चला जाता है।
कला की खासियत यह होती है कि यथार्थ की जो दिशा और जो रूप विचारों में इतनी मूर्त नहीं होते कि अभिधा में भाषाई अभिव्‍यक्ति पा सके, उसे रूपकों, बिम्‍बों, फंता‍सियों, रंगों, रेखाओं  या संगीत की स्‍वर-लहरियों के माध्‍यम से अभिव्‍यक्‍त करती हैं और अवचेतन से अवचेतन के बीच सेतु बना देती है।
दर्शन इस काम को दूसरी विधि से अंजाम देता है। वह गति के नियमों के सामान्‍य सूत्रीकरणों को ज्‍यादा से ज्‍यादा अमूर्त धरातल पर प्रस्‍तुत कर सकता है। इस मायने में एक श्रेष्‍ठ वैज्ञानिक भी दार्शनिक ही होता है। दर्शन और विज्ञान में मात्र इतना फर्क है कि विज्ञान प्रयोग या पर्यवेक्षण द्वारा सत्‍यापन को आवश्‍यक मानता है जबकि दर्शन तथ्‍यों से सत्‍य का निगमन करते हुए और सूत्रीकरण करते हुए तार्किक सुसंगति मात्र पर बल देता है।
राजनीति कार्रवाई का शास्‍त्र है, य‍ह फैसलाकुन होने की माँग करता है। आर्थिक सम्‍बन्‍ध समाज की बुनियाद है और राजनीति आर्थिक सम्‍बन्‍धों की घनीभूत अभिव्‍यक्ति। राजनीति  की नियंत्रक चोटी पर कब्‍जा करके ही सामाजिक ढाँचे को बदला जा सकता है। लेकिन यह बदलाव मानव उपादान के माध्‍यम से ही सम्‍भव है। जिसके दिल में अन्‍याय से घृणा और मानव मुक्ति के उदात्‍त भविष्‍य स्‍वप्‍न नहीं हैं, वह मात्र क्रांति का विज्ञान जानने के कारण दुनिया  बदलने के काम में अपने को नहीं झोंक सकता। दूसरे यदि वह लोगों को स्‍वप्‍न और आकांक्षाएँ नहीं दे सकता तो लोग उसके आह्वान पर दुनिया बदलने के लिए कुर्बानियाँ  देने को नहीं उठ खड़े हो सकते। इसीलिए एक प्रभावी संगठनकर्ता वही हो सकता है, जो निर्णायकता और आह्वान करने के मामले में एक सेनानायक हो, परिस्थितियों की गति और दिशा का आकलन करने के मामले में एक दार्शनिक हो, साथ ही, इंसानों के बारे में, मानव उपादान के मामले में, एक कवि या कलाकार की तरह कल्‍पनाशीलता, भावप्रवणता और सरोकार के साथ सोचता हो।

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