Wednesday, June 04, 2014

ऐसे दलितवादी अगियाबैताल दलित-हितों को सिर्फ नुकसान ही पहुँचायेंगे



--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

अनूप कुमार ने 12 मई की अपनी एक पोस्‍ट में इस बात पर क्षोभ प्र‍कट किया है कि निर्भया काण्‍ड पर दिल्‍ली में विरोध करने वाले लोग भगाणा काण्‍ड पर उस तरह आगे नहीं आये। इसका दोष सभी सवर्णों पर मढ़ते हुए वे लिखते हैं:''...now if u all have bloody guts and some shame go and do the same on all the upper castes who were crying buckets and were so fucking outraged then but are silent on dalit women fighting at jantar mantar for over a period of one month along with their infants.. as if nothing is happening..as if they do not know what is happening there .. as if these are no women..''
सचमुम यह निहायत ही शर्मनाक और घटिया विचार है, इससे न तो भगाणा के उत्‍पीड़ि‍तों को कोई न्‍याय मिलने वाला है, न ही दलित उत्‍पीड़न की बर्बरता के विरुद्ध संघर्ष का ही कुछ भला होने वाला है। अनूप कुमार ललकार रहे हैं कि निर्भया काण्‍ड पर आँसू बहाने वाले और भगाणा काण्‍ड पर चुप रहने वाले ऊँची जाति के लोगों के घरों की स्त्रियों के साथ दलितों को वही करना चाहिए जो भगाणा की दलित लड़कियों के साथ हुआ। इससे निकृष्‍ट प्रतिक्रियावादी भँड़ास और कोई नहीं हो सकती। यानी अनूप कुमार सारा बदला स्त्रियों को ही शिकार बनाकर निकालना चाहते हैं।
अनूप कुमार को यह नहीं दीख रहा है कि भगाणा काण्‍ड पर दिल्‍ली और हरियाणा में जो विरोध-प्रदर्शन जारी हैं, उनमें दलित संगठनों से अधिक प्र‍गतिशील छात्र-युवा संगठन और जनवादी अधिकार संगठन शामिल हैं। जातिगत आधार पर देखें तो इन सभी विरोध प्रदर्शनों में दलित जातियों से अधिक गैर दलित जातिेयों के लोग शामिल हैं।
इस तरह की बातों के हवाई गोले छोड़ने वाले लोग व्‍यवहारत: दलित स्त्रियों के उत्‍पीड़न-विरोधी संघर्ष को दलितों तक सीमित कर देना चाहते हैं, स्‍त्री-उत्‍पीड़न का जवाब स्‍त्री-उत्‍पीड़न से देने का घटिया प्रतिक्रियावादी नुस्‍खा सुझाते हैं, दलित उत्‍पीड़न विरोधी संघर्ष को केवल दलितों का ही मुद्दा बनाये रखना चाहते हैं और इसके साथ खड़े होने वाली जनवादी, प्रगतिशील चेतना वाली भारी आबादी को लात मारकर दूर भगा देना चा‍हते हैं।
ऐसे दलित अगिया बैताल बुद्धिजीवी उत्‍पीड़ि‍त दलित मेहनतक़श आबादी के घोर शत्रु हैं। इनकी दलित अलगाववादी बकवास से दलित आबादी की मुक्ति को कोई लाभ नहीं, बल्कि गम्‍भीर नुकसान ही होगा।
दलित-मुक्ति का सवाल समाज के सभी इंसाफपसंद, तरक्‍कीपसंद, जम्‍हूरियत पसंद जमातों का अपना सवाल है। दलित मुक्ति का सवाल पूरी सामाजिक मुक्ति के सवाल से जुड़ा हुआ है। दलित राजनीति को पहचान की राजनीति के चश्‍मे से देखने वाले दलित मध्‍यवर्गीय बुद्धिजीवी जुझारू संघर्षों में खुद तो सड़कों पर उतरते नहीं, लेखनी से आग उगलकर दलित मेहनतकशों को ही अलग-थलग कर देने का काम करते हैं।
अनूप कुमार के वॉल से ही उनकी राजनीति का पता चल जाता है। जनाब, ''आइडेण्टिटी पॅलिटिक्‍स'' के ''फुट सोल्‍जर'' हैं, उलान बटोर, मंगोलिया में रहते हैं। टिम्‍बकटू (माली) और पेरिस की शिक्षा बताते हैं। सारा परिचय ही संदिग्‍ध सा और अजीबोगरीब लगता है। अपने वॉल पर कांशीराम की फोटो चिपकाये हुए हैं। यह शख्‍स ज़रूर कोई एन.जी.ओ. पंथी है, जो पहचान की राजनीति की अकर्मण्‍य बकवास करते रहते हैं। इस व्‍यक्ति से पहले यह पूछना चाहिए कि इस पूरे आंदोलन में कांशीराम की राजनीति के सारे पहरुए कहाँ थे? इस व्‍यक्ति से यह भी पूछना चाहिए यह खुद इस माम
ले में क्‍या कर रहा है? क्‍या जिस बात के लिए यह दलितों को ललकार रहा है, उसी की तैयारी में लगा हुआ है?सचमुम यह निहायत ही शर्मनाक और घटिया विचार है, इससे न तो भगाणा के उत्‍पीड़ि‍तों को कोई न्‍याय मिलने वाला है, न ही दलित उत्‍पीड़न की बर्बरता के विरुद्ध संघर्ष का ही कुछ भला होने वाला है। अनूप कुमार ललकार रहे हैं कि निर्भया काण्‍ड पर आँसू बहाने वाले और भगाणा काण्‍ड पर चुप रहने वाले ऊँची जाति के लोगों के घरों की स्त्रियों के साथ दलितों को वही करना चाहिए जो भगाणा की दलित लड़कियों के साथ हुआ। इससे निकृष्‍ट प्रतिक्रियावादी भँड़ास और कोई नहीं हो सकती। यानी अनूप कुमार सारा बदला स्त्रियों को ही शिकार बनाकर निकालना चाहते हैं।अनूप कुमार को यह नहीं दीख रहा है कि भगाणा काण्‍ड पर दिल्‍ली और हरियाणा में जो विरोध-प्रदर्शन जारी हैं, उनमें दलित संगठनों से अधिक प्र‍गतिशील छात्र-युवा संगठन और जनवादी अधिकार संगठन शामिल हैं। जातिगत आधार पर देखें तो इन सभी विरोध प्रदर्शनों में दलित जातियों से अधिक गैर दलित जातिेयों के लोग शामिल हैं।इस तरह की बातों के हवाई गोले छोड़ने वाले लोग व्‍यवहारत: दलित स्त्रियों के उत्‍पीड़न-विरोधी संघर्ष को दलितों तक सीमित कर देना चाहते हैं, स्‍त्री-उत्‍पीड़न का जवाब स्‍त्री-उत्‍पीड़न से देने का घटिया प्रतिक्रियावादी नुस्‍खा सुझाते हैं, दलित उत्‍पीड़न विरोधी संघर्ष को केवल दलितों का ही मुद्दा बनाये रखना चाहते हैं और इसके साथ खड़े होने वाली जनवादी, प्रगतिशील चेतना वाली भारी आबादी को लात मारकर दूर भगा देना चा‍हते हैं।ऐसे दलित अगिया बैताल बुद्धिजीवी उत्‍पीड़ि‍त दलित मेहनतक़श आबादी के घोर शत्रु हैं। इनकी दलित अलगाववादी बकवास से दलित आबादी की मुक्ति को कोई लाभ नहीं, बल्कि गम्‍भीर नुकसान ही होगा।दलित-मुक्ति का सवाल समाज के सभी इंसाफपसंद, तरक्‍कीपसंद, जम्‍हूरियत पसंद जमातों का अपना सवाल है। दलित मुक्ति का सवाल पूरी सामाजिक मुक्ति के सवाल से जुड़ा हुआ है। दलित राजनीति को पहचान की राजनीति के चश्‍मे से देखने वाले दलित मध्‍यवर्गीय बुद्धिजीवी जुझारू संघर्षों में खुद तो सड़कों पर उतरते नहीं, लेखनी से आग उगलकर दलित मेहनतकशों को ही अलग-थलग कर देने का काम करते हैं।अनूप कुमार के वॉल से ही उनकी राजनीति का पता चल जाता है। जनाब, ''आइडेण्टिटी पॅलिटिक्‍स'' के ''फुट सोल्‍जर'' हैं, उलान बटोर, मंगोलिया में रहते हैं। टिम्‍बकटू (माली) और पेरिस की शिक्षा बताते हैं। सारा परिचय ही संदिग्‍ध सा और अजीबोगरीब लगता है। अपने वॉल पर कांशीराम की फोटो चिपकाये हुए हैं। यह शख्‍स ज़रूर कोई एन.जी.ओ. पंथी है, जो पहचान की राजनीति की अकर्मण्‍य बकवास करते रहते हैं। इस व्‍यक्ति से पहले यह पूछना चाहिए कि इस पूरे आंदोलन में कांशीराम की राजनीति के सारे पहरुए कहाँ थे? इस व्‍यक्ति से यह भी पूछना चाहिए यह खुद इस मामले में क्‍या कर रहा है? क्‍या जिस बात के लिए यह दलितों को ललकार रहा है, उसी की तैयारी में लगा हुआ है?

1 comment:


  1. कल 06/जून /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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