--कविता कृष्णपल्लवी
उग्र हिन्दुत्ववादी फासीवाद के विरोध को केवल संसदीय चुनावों में मोदी और भाजपा गठबंधन की हारजीत तक सीमित कर देना एक अनैतिहासिक, भ्रामक और ख़तरनाक सामाजिक जनवादी प्रवृत्ति है।
मोदी यदि सत्ता में न आये, तो भी हिन्दुत्ववाद आने वाले दिनों में भारतीय सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर बना रहेगा, सड़कों पर उत्पात मचाता रहेगा और मेहनतक़श जनता की वर्गीय एकजुटता को छिन्न-भिन्न करता रहेगा। साम्राज्यवाद और देशी पूँजीपति वर्ग जंज़ीर में बँधे कुत्ते की तरह फासीवाद को बनाये रखेंगे ताकि मौका पड़ने पर मेहनतक़श जनता के खिलाफ उसका इस्तेमाल किया जा सके।
दूसरी बात, संकटग्रस्त, रुग्ण पूँजीवादी समाज आज फासीवादी प्रवृत्तियों को इस प्रकार जन्म दे रहा है, जैसे सड़ते हुए कूड़े-कचरे की ढेरी पर ज़हरीले कीड़े-मकोड़े पैदा होते हैं। बड़े पैमाने पर पीले बीमार चेहरे और अवसाद ग्रस्त मानस वाले निम्न मध्यवर्गीय युवा तथा उत्पादन प्रक्रिया से बाहर धकेल दिये गये मज़दूरों के विमानवीकृत हिस्से फासिस्टों की गुण्डा वाहिनियों में शामिल हो रहे हैं। कारपोरेट कल्चर में रचे-पगे उच्च मध्यवर्गीय शिक्षित युवा फासिस्टों की बौद्धिक जमातों और मुखर समर्थकों में शामिल हो रहे हैं। व्यापारियों और सवर्ण जातियों के पुराने प्रतिक्रियावादियों के मुक़ाबले नवधनिक मध्यवर्ग और कुलकों फार्मरों में बना हिन्दुत्ववादी फासीवादियों का नया सामाजिक आधार अधिक व्यापक है। यह एक प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन है, जिसका सूत्रधार कैडर-आधारित संघ परिवार है। भाजपा मात्र उसका चुनावी मोर्चा है। इसका मुकाबला केवल व्यापक मेहनतक़श जनता में सघन राजनीतिक कार्य करके, उसकी जुझारू वर्गीय लामबंदी करके ही किया जा सकता है। कैडर-आधारित ढाँचे वाले, सर्वहारा वर्ग के क्रान्तिकारी संगठन ही इस काम को कर सकते हैं। ऐसे संगठनों का कमजोर होना और एक सर्वभारतीय क्रान्तिकारी पार्टी का न होना फिलहाल फासीवादी उभार के पक्ष में एक बहुत बड़ा उपादान सिद्ध हो रहा है। साम्प्रदायिकता-विरोध की रस्मी कवायद करने वाले और धुर अवसरवादी क्षेत्रीय बुर्जुआ पार्टियों से चुनावी जोड़-तोड़ करने वाले संसदीय जड़वामन सामाजिक-जनवादियों से जुझारू फासीवाद-विरोधी संघर्ष में उतरने की उम्मीद पालना व्यर्थ है। ये मोमबत्तियाँ जलाते रहेंगे, सूफी संगीत गाते रहेंगे, संगोष्ठी-सम्मेलन करते रहेंगे, चुनावी मोर्चे बनाते रहेंगे, लेकिन मज़दूर वर्ग को फासीवाद के विरुद्ध जुझारू ढंग से लामबंद करने के काम में कभी हाथ नहीं डालेंगे। मज़दूरों को बस आर्थिक संघर्ष और समझौतों में उलझाये रखकर ये कमीशन खाते रहेंगे। यही इनका धंधा है।
हिन्दुत्ववादी फासीवाद विरोधी संघर्ष पूँजीवादी व्यवस्था विरोधी संघर्ष का ही एक अंग है। नवउदारवाद के दौर में पूँजीवादी राज्यसत्ता स्वयं ज्यादा से ज्यादा निरंकुश सर्वसत्तावादी होते हुए फासीवादी चरित्र अख्तियार करती जा रही है, सरकार चाहे जिस किसी भी बुर्जुआ पार्टी की हो। उदारीकरण-निजीकरण और मज़दूरों से अतिलाभ निचोड़ने के लिए साम्राज्यवादियों और पूँजीपतियों की यह ज़रूरत है। हिन्दुत्ववादी फासीवाद की राजनीतिक पार्टी अपनी प्रकृति से इस काम के लिए अधिक उपयुक्त और कुशल है कि बर्बर ढंग से जन प्रतिरोधों को कुचल कर पूँजीवादी लूट की नीतियों को लागू कर सके, अत: वह शासक वर्ग की आरक्षित शक्ति और अंतिम विकल्प है। लेकिन यदि कोई और बुर्जुआ पार्टी भी शासन में रहे तो नवउदारवाद की नीतियों को निर्बाध रूप से लागू करने के लिए वह भी निरंकुश दमन का ही रास्ता अपनायेगी। जहाँ तक फासीवादियों का सवाल है, सत्ता में न रहते हुए भी वे समाज में अलगाव पैदा करने, धर्मोन्माद भड़काने और जनता की वर्गीय एकजुटता को तोड़ने का काम करते रहेंगे।
इसलिए फासीवाद का कारगर विरोध संसदीय चौहद्दी के दायरे तक सीमित रहकर कदापि नहीं किया जा सकता। इस धुर प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन का जवाब एक क्रान्तिकारी सामाजिक आन्दोलन ही हो सकता है। फासीवाद विरोध के कार्यभार को समूची पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध के ऐतिहासिक, क्रान्तिकारी, दीर्घकालिक कार्यभार से अलग नहीं किया जा सकता। इस संदर्भ में बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की ये पंक्तियाँ बेहद महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य हैं:
''जो लोग पूँजीवाद का विरोध किये बिना फासीवाद का विरोध करते हैं, जो उस बर्बरता पर दुखी होते हैं जो बर्बरता के कारण पैदा होती है, वे ऐसे लोगों के समान हैं जो बछड़े को जिबह किये बिना ही मांस खाना चाहते हैं। वे बछड़े को खाने के इच्छुक हैं लेकिन उन्हें खून देखना नापसन्द है। वे आसानी से सन्तुष्ट हो जाते हैं अगर कसाई मांस तौलने से पहले अपने हाथ धो लेता है। वे उन सम्पत्ति सम्बन्धों के खिलाफ नहीं हैं जो बर्बरता को जन्म देते हैं, वे केवल अपने आप में बर्बरता के खिलाफ हैं। वे बर्बरता के विरुद्ध आवाज उठाते हैं, और वे उन देशों में ऐसा करते हैं जहाँ ठीक ऐसे ही सम्पत्ति सम्बन्ध हावी हैं,लेकिन जहाँ कसाई मांस तौलने से पहले अपने हाथ धो लेते हैं।''
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