Saturday, March 08, 2014

क्‍या चाय बेचने वाले का मज़ाक नहीं उड़ाया जा सकता?




--कविता कृष्‍णपल्‍लवी
जब लोकरंजकता की लहर चलती है तो तार्किकता का कोई पूछनहार नहीं होता। आजकल मोदी और भाजपाई इस बात को खूब भुना रहे हैं कि मोदी कभी चाय बेचते थे। वे कांग्रेस और मणिशंकर अय्यर पर हमले कर रहे हैं कि उन्‍होंने मोदी की पृष्‍ठभूमि की खिल्‍ली उड़ाई। कुछ सेक्‍युलर और प्रगतिशील लोग भी कहते मिल रहे हैं कि मोदी की चाय बेचने की पृष्‍ठभूमि का मज़ाक नहीं उड़ाया जाना चाहिए।
मेरा ख़याल कुछ ज़ुदा है। यदि कोई चाय बेचने की पृष्‍ठभूमि को भुनाता है तो उसका मज़ाक ज़रूर उड़ाया जाना चाहिए। चाय बेचने वाले के प्रधानमंत्री बन जाने से देश में चाय बेचने वालों और तमाम उन जैसों का भला होगा या नहीं, यह इस बात से तय होगा कि राज्‍यसत्‍ता का चरित्र क्‍या है, चाय  बेचने वाले की पार्टी की नीतियाँ क्‍या हैं! जैसे तमाम पिछड़ी चेतना के मज़दूरों को यदि सत्‍ता सौंप दी जाये, तो समाजवाद नहीं आ जायेगा! समाजवाद वह हरावल पार्टी ही ला सकती है जो क्रान्ति के विज्ञान को, समाजवाद की अर्थनीति और राजनीति को समझती हो!
केवल किसी की व्‍यक्तिगत पृष्‍ठभूमि ग़रीब या मेहनतक़श का होने से कुछ नहीं होता। बाबरी मस्जिद ध्‍वंस करने वाली उन्‍मादी भीड़ में और गुजरात के दंगाइयों में बहुत सारी लम्‍पट और धर्मान्‍ध सर्वहारा-अर्धसर्वहारा आबादी भी शामिल थी। दिल्‍ली गैंगरेप के सभी आरोपी मेहनतक़श पृष्‍ठभूमि के थे। भारत की और दुनिया की बुर्ज़ुआ राजनीति में पहले भी बहुतेरे नेता एकदम सड़क से उठकर आगे बढ़े थे, पर घोर घाघ बुर्ज़ुआ थे। कई कांग्रेसी नेता भी ऐसे थे। चाय बेचने वाला यदि प्रधानमंत्री पद का प्रत्‍याशी है और इतिहास-भूगोल-दर्शन-सामान्‍य ज्ञान -- सबकी टाँग तोड़ता है तो एक बुर्ज़ुआ नागरिक समाज का सदस्‍य भी उसका मज़ाक उड़ाते हुए कह सकता है कि वह चाय ही बेचे, राजनीति न करे। चाय बेचने वाला यदि एक फासिस्‍ट राजनीति का अगुआ है तो कम्‍युनिस्‍ट तो और अधिक घृणा से उसका मज़ाक उड़ायेगा। यह सभी चाय बेचने वालों का मज़ाक नहीं है, बल्कि उनके हितों से विश्‍वासघात करने वाले लोकरंजक नौटंकीबाज का मज़ाक है।
हिटलर ने भी सेना में जाने के पहले कैजुअल मज़दूरी करते हुए रंगसाज़ी का काम किया था और बेर्टोल्‍ट ब्रेष्‍ट ने अपनी कई कविताओं में 'रंगसाज हिटलर' को एक रूपक बनाते हुए उसका खूब मज़ाक उड़ाया है। चाय बेचने वाले मोदी पर, मैं सोचती हूँ, काफी अच्‍छी व्‍यंग्‍यात्‍मक कविताएँ लिखी जा सकती है।
और अंत में एक किस्‍सा। एक मुलाक़ात के दौरान ख्रुश्‍चोव ने  चाऊ एन-लाई से कहा कि 'हम लोगों में एक बुनियादी फ़र्क यह है कि मैं मेहनतक़श वर्ग से आता हूँ, जबकि आप कुलीन वर्ग से। चाऊ एन-लाई ने कहा, 'लेकिन एक बुनियादी समानता भी है। हम दोनों ने अपने-अपने वर्ग से गद्दारी की है।'नरेन्‍द्र मोदी चाय बेचता था, यह रट्टा लगाना वह बंद कर देगा, यदि उसे पता चलेगा कि मुसोलिनी एक लुहार का बेटा था, जो बचपन में लुहारी के काम में अपने पिता की मदद करता था और हिटलर पहले घरों में रंगाई-पुताई का काम करता था। चाय बेचने की पृष्‍ठभूमि वाले नरेन्‍द्र मोदी, यार, तुम्‍हारी तो पृष्‍ठभूमि भी तुम्‍हारे नायकों जैसी ही है!ये तो पोपट हो गया!

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