Thursday, March 20, 2014

कृश्‍न चंदर के गधे की नयी आत्‍मकथा (पत्र शैली में)


मित्रो, पहचाना मुझे? अरे, मैं वही कृश्‍नचंदर वाला गधा हूँ। आदमी जैसा तो पहले से ही बोलता था। आपको शायद पता ही होगा, कुछ दिनों तक तो मैं पागलपन जैसी अवस्‍था में भी रहा। फिर ठीक होकर इधर-उधर भटक ही रहा था कि एक भलेमानस कम्‍युनिस्‍ट से टकरा गया। फिर मार्क्‍सवादियों की संगत में मैं मार्क्‍सवादी बन गया। एक कम्‍युनिस्‍ट ग्रुप में भी शामिल हो गया। सिद्धान्‍तकार बनना चाहता था, पर वे लोग मुझसे सिर्फ मोटे काम ही करवाते थे। दूसरे, वहाँ कोई गधी भी नहीं थी, और मेरी उमर भी बीती जा रही थी। दुखी-कुण्ठित मैं यहाँ-वहाँ दुलत्‍ती झाड़ता रहता था, कभी सामान टूटते तो कभी किसी को चोट लगती। फिर मेरे कम्‍युनिस्‍ट साथियों ने मुझे यह कहकर भगा दिया कि तुम रहोगे गधे ही, कम्‍युनिस्‍ट कभी नहीं बन पाओगे। अब मैं क्‍या करता? न पूरा कम्‍युनिस्‍ट रह गया था, न ही पूरा गधा। हृदय में प्रतिशोध की आग जल रही थी। तय किया कि इतने गधे कम्‍युनिस्‍ट और कम्‍युनिस्‍ट गधे तैयार करूँगा कि कम्‍युनिस्‍टों को छट्टी का दूध याद दिला दूँगा। उनके सारे कामों का गुड़-गोबर कर दूँगा।
तबसे 'गर्दभ क्रान्तिसेवी व्‍यक्तित्‍व निर्माण गुरुकुल' नामका एक संस्‍थान चलाता हूँ। मुझे पुराने रूप में बहुत लोग जानते हैं इसलिए इन दिनों शेर का मुखौटा पहनकर संतों की तरह नैतिक सदाचार के उपदेश देता रहता हूँ। मजे की बात यह है कि मेरे इस प्रोजेक्‍ट में मदद करने के लिए बहुत सारे ऐसे नामधारी कम्‍युनिस्‍ट आ गये जो फितरतन लोमड़ हैं। बुद्धिजीवी हैं, अफसर-पत्रकार-प्रोफेसर-एन.जी.ओ. वाले हैं, आन्‍दोलन से मेरी ही तरह भगाये गये या भागे हुए हैं और वास्‍तव में जनता के बीच काम करने वाले कम्‍युनिस्‍ट क्रान्तिकारियों से वैसे ही खार खाये हुए हैं जैसे कि मैं। यूँ तो गधों और लोमड़ों की दोस्‍ती सामान्‍यत: नहीं होती, पर 'दुश्‍मन का दुश्‍मन दोस्‍त' की नीति के हिसाब से हमलोगों के बीच रणनीतिक संयुक्‍त मोर्चा बन गया है। धार्मिक कट्टरपंथ की राजनीति करने वाले कुछ जंगली कुत्‍ते भी मेरा साथ दे रहे हैं। मैं उनसे बार-बार पर्दे के पीछे रहने के लिए कहता हूँ, पर वे तो मुझसे भी बड़े गधे हैं, कई बार खुले में आकर मेरे पक्ष में बोलने लगते हैं और मेरा खेल बिगड़ जाता है। बहरहाल, बहुत सारे भोले-भाले हिरनों, ब‍करियोंऔर पागुर करते बैलों को तो मैंने कनविंस कर ही लिया है कि मैं एक समर्पित, सच्‍चा संतनुमा कम्‍युनिस्‍ट हूँ। यूँ भारतीय बड़े संस्‍कारी जीव होते हैं, कम्‍युनिस्‍ट को भी संत के चोले में देखना चाहते हैं।
आगे मैं सोच रहा हूँ कि सच्‍या सौदा, निर्मल बाबा और रामदेव के 'भारत स्‍वाभिमान' को कम्‍युनिस्‍ट शब्‍दावली के फेंटकर एक सम्‍मोहनकारी प्रभाव वाला मिश्रण तैयार करूँ यह आइडिया कैसा है? -- मित्रगण मुझे राय दें। मिलकर या ई-मेल द्वारा या फेसबुक पर मेरे मैसेज बॉक्‍स में जाकर, खुले तौर पर नहीं। अपनी रणनीति गुप्‍त रखनी होगी, क्‍योंकि सच्‍चे कम्‍युनिस्‍ट क्रान्तिकारी भी अब पहले की तरह चुप नहीं हैं, अब वे हमारी पोल-पट्टी खोलने पर आमादा हैं। मित्रगण परामर्श अवश्‍य दें। हमारी एकता ज़रूरी है। एकता में ही शक्ति है।
साभार, आपका,
सन्‍त चण्‍ट नैतिकानंद
(उर्फ कृश्‍नचंदर का वही पुराना गधा)
कुलाधिपति,
गर्दभ क्रान्तिसेवी व्‍यक्तित्‍व निर्माण गुरुकुल



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