Friday, January 17, 2014

फिर फँसे बाबा रामदेव



फिर फँसे बाबा रामदेव। ज़मीन की ख़रीद-फरोख्‍़त में करोड़ों की स्‍टाम्‍प ड्यूटी चोरी की है। ग्राम सभा और सरकारी ज़मीनों पर अवैध कब्‍ज़े, सहयोगी बालकृष्‍ण का फर्जी पासपोर्ट मामला, गुरुजी की रहस्‍यमय गुमशुदगी, भाई रामभरत द्वारा कर्मचारी की पिटाई और धमकी...... यह जो चन्‍द वर्षों में खरबों का योग-साम्राज्‍य है, इसके पीछे क्‍या-क्‍या छिपा है -- यह अब खुल चुका है। आसाराम-नारायण साईं के पॉंच खरब के धर्म साम्राज्‍य के पीछे की सारी काली करतूतें तो सामने आ ही चुकी हैं -- धोखा देकर यौन उत्‍पीड़न, व्‍यभिचार, ज़मीनों पर कब्‍ज़े। तांत्रिक चन्‍द्रास्‍वामी, धीरेन्‍द्र ब्रह्मचारी, भीमानन्‍द, नित्‍यानन्‍द, प्रेमानन्‍द, स्‍वामी सदाचारी, कृपालु महाराज, गुरमीत राम रहीम, जयेन्‍द्र सरस्‍वती आदि-आदि। कितने नाम गिनाये जायें। अवैध ज़मीन कब्‍ज़ा, हथियार तस्‍करी, हत्‍या का षड्यंत्र, व्‍यभिचार-बलात्‍कार, राजनेताओं के साथ काले धंधों में संलिप्‍तता, -- सभी किस्‍म के आरोप हैं इनपर। यह पँजीवादी युग का धर्म है -- पूरीतरह से पूँजी का खेल है। हरिद्वार, ऋषिकेश, बनारस, अयोध्‍या, प्रयाग के और दक्षिण भारत के मन्दिरों-मठों-आश्रमों में भक्‍त बनकर जाकर देखिये अन्‍दर का तमाशा। करोड़ों से लेकर अरबों-खरबों तक के खेल हैं। ट्रस्‍ट बनाकर शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य आदि के जो संस्‍थान चलाये जाते हैं, वह काले को सफेद करने का धंधा है। राज्‍यसत्‍ता तो पूँजी की सेवा करती ही है, धर्म भी उसका बहुत बड़ा स्‍तम्‍भ है। एक ओर यह पूँजी संचय का माध्‍यम है, दूसरी ओर जनता को भाग्‍यवादी बनाकर परिवर्तन के लिए उसकी चेतना को तैयार नहीं होने देता। पूँजी का जनवाद जितना क्षरित हो रहा है, धर्म से उसका ''पवित्र गठबंधन'' उतना ही मजबूत हो रहा है। यह बढ़ता धार्मिक घटाटोप भी हिन्‍दुत्‍ववाद की फासिस्‍ट राजनीति के सामाजिक आधार को दृढ़ और व्‍यापक बना रहा है। यही काम दूसरी ओर वहाबी इस्‍लामी कट्टरपंथ भी कर रहा है। दोनो ही एक-दूसरे के पूरक हैं। क्रान्तिकारी प्रचार और संघर्षों  के ज़रिए जनता की वर्गचेतना बढ़ाकर ही इनका मुक़ाबला किया जा सकता है। भगतसिंह ने भी ऐसा ही कहा था। 

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