Wednesday, February 06, 2013

मानव इतिहास में विकास का नियम



जैसे कि जैव प्रकृति में डार्विन ने विकास के नियम का पता लगाया था, वैसे ही मानव इतिहास में मार्क्‍स ने विकास के नियम का पता लगाया था। उन्‍होंने इस सीधी-सादी सच्‍चाई का पता लगाया - जो अबतक विचारधारा की अतिवृद्धि से ढँकी हुई थी - कि राजनीति, विज्ञान, कला, धर्म आदि में लगने के पूर्व मनुष्‍य जाति को खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना और सिर के ऊपर साया चाहिए। इसलिए जीविेका के तात्‍कालिक भौतिक साधनों का उत्‍पादन और फलत: किसी युग में अथवा किसी जाति द्वारा उपलब्‍ध आर्थिक विकास की मात्रा ही वह आधार है जिसपर राजकीय संस्‍थाएँ, क़ानूनी धारणाएँ, कला और यहाँ तक कि धर्म सम्‍बन्‍धी धारणाएँ भी विकसित हुई हैं। इसलिए इस आधार के ही प्रकाश में इन सबकी व्‍याख्‍या की जा सकती है, न कि इसके उल्‍टा, जैसा कि अबतक होता आ रहा है।

परन्‍तु इतना ही नहीं, मार्क्‍स ने गति के उस विशेष नियम का पता लगाया जिससे उत्‍पादन की वर्तमान पूँजीवादी प्रणाली और इस प्रणाली से उत्‍पन्‍न पूँजीवादी समाज, दोनों ही नियंत्रित हैं। अतिरिक्‍त मूल्‍य के आविष्‍कार से एकबारगी उस समस्‍या पर प्रकाश पड़ा, जिसे हल करने की कोशिश में किया गया अबतक का सारा अन्‍वेषण - चाहे वह पूँजीवादी अर्थशास्त्रियों ने किया हो या समाजवादी आलोचकों ने, अन्‍ध-अन्‍वेषण ही था।

-एंगेल्‍स (मार्क्‍स की समाधि पर भाषण, 1883)

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