Saturday, April 23, 2011

निष्क्रिय प्रतीक्षा का अवसरवादी तर्क

विचारों से वे एक प्रबुद्ध नागरिक थे। पूंजीवादी व्‍यवस्‍था की तमाम बुराइयों,बर्बताओं और संकट के बारे में हमारी बातों से सहमत थे।
उन्‍होंने कहा, ''मैं जानता हूं कि क्रांति ही एकमात्र रास्‍ता है और एक न एक दिन वह होगी ही। लेकिन फिलहाल तो लोग निराश हैं। क्रांति जल्‍दी नहीं होने जा रही है। तब तक हम क्‍या करें?''
बहुत बुनियादी सवाल है। क्रांति जब दूर है, तब हम क्‍या करें? इसका एकमात्र उत्‍तर यही हो सकता है कि चींटी, दीमक और मधुमक्‍खी की तरह लगातार, अनथक अपने काम में लगे रहो, क्रांति की तैयारी लगातार जा़री रखो, जहां भी मौका मिले, सत्‍ता के ख़ि‍लाफ़ आवाज़ उठाओ, लोगों को बदलने और बगा़वत के लिए एकजुट होने के लिए तैयार करो। अन्‍याय और अधिकारों के अपहरण के विरुद्ध रोज़-रोज़, जहां कहीं भी मौका और गुंजाइश हो, आवाज़ उठाओ और छोटे-छोटे अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए लोगों में यह यकीन पैदा करो कि लोग सामूहिक तौर पर जितने बड़े पैमाने पर संगठित होंगे, उतने बड़े पैमाने की जीत हासिल कर सकते हैं। समाज और देश-दुनिया के बारे में साम्राज्‍यवादी-पूंजीवादी मीडिया और सत्‍ताधर्मी बुद्धिजीवियों द्वारा जो भी बताया-समझाया जाता है, उसकी असलियत जानो-समझो और दूसरों को बताओ। यथास्थितिवादी जड़ता को तोड़कर क्रांतिकारी बदलाव के पक्ष में पब्लिक ओपिनियन तैयार करने के लिए वैकल्पिक क्रांतिकारी मीडिया संगठित करो। चीज़ों को बदलने के लिए लोगों की मानसिकता को बदलो और ख़ुद को भी बदलो।
क्रांति अभी दूर है, यह सोचकर कुछ न करना और अपने आस-पास घट रहे तमाम अनाचार-अत्‍यायार-भ्रष्‍टाचार-अन्‍याय-अमानवीकरण से आंख मूंदकर बस अपने में मस्‍त होकर जीना, बस अपनी तरक्‍की और सुविधाओं के बारे में सोचना वास्‍तम में पूंजीवादी सनक और उन्‍माद की उम्र बढ़ाना है। क्रांति अभी दूर है, यह सोचकर उसे और दूर नहीं धकेला जा सकता है।
क्रांति एक सचेतन सामूहिक क्रिया है। जितनी मेहनत और लगन से लोगों को इसके लिए तैयार किया जायेगा, इसे उतना ही निकट लाया जा सकता है। क्रांति अभी दूर है तो आराम मत करो। क्रांति की तैयारी में अपनी पूरी ताकत लगा दो।
आज से एकदम भिन्‍न, एक नयी, समूची दुनिया सम्‍भव है। एक बेहतर भविष्‍य सम्‍भव है। लेकिन हमें उठ खड़ा होना होगा और उसके लिए लड़ना होगा।
अपने आस-पास के पतन और पागलपन की ओर, अराजकता और अलगाव की ओर, सत्‍ताधारियों के लूटपाट और अपराधों की ओर, महज़ ज़ि‍न्‍दा रहने के लिए आम आदमी द्वारा रोज़-रोज़ किये जा रहे संघर्षों की ओर, अंधी-प्रतिस्‍पर्द्धा में एकदूसरे को रौंद-कुचलकर आगे बढ़ते लोगों की ओर, नज़र दौड़ाओ! मनुष्‍यता को यदि बचाना है तो पूंजीवाद को एक गहरी कब्र ख़ोदकर उसमें दफ़न करना होगा।    

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