Tuesday, February 15, 2011

ट्यूनीशिया और मिस्र के जनउभार: समूचे अरब जगत में फैल रहा है विद्रोह का दावानल भयाकुल हैं साम्राज्‍यवादी और भ्रष्‍ट पूँजीवादी शासक

गत माह के प्रारम्‍भ में ट्यूनीशिया का निरंकुश राष्‍ट्राध्‍यक्ष बेन अली जन-उद्रेक से भयाक्रान्‍त होकर देश छोड़कर भाग गया। अगली पारी मिश्र की थी। अठारह दिनों तक लगातार चले जन-उभार के प्रचण्‍ड तूफान ने हुस्‍नी मुबारक की भ्रष्‍ट और निरंकुश सत्‍ता को भूलुण्ठित कर दिया।

जन-विद्रोह का बवण्डर पूरे अरब जगत में फैल रहा है। शेखों शाहों और निरंकुश भ्रष्‍ट शासकों की सत्‍ताएं कांप रही हैं। अमेरिका और अन्‍य साम्राज्‍यवादी चिन्‍ता से बेहाल हैं। इस्राइल के आततायी जियनवादी शासकों को सांप सूंघ गया है।

अरब जगत के तेल धनी शेख और शाह तो शुरु से ही साम्राज्‍यवाद के पिट्ठू रहे हैं। आधी सदी पहले ट्यू‍नीशिया अल्‍जीरिया जैसे देशों में राष्‍ट्रीय मुक्ति के संघर्ष के बाद लोकप्रिय राष्‍ट्रीय पूंजीवादी सरकारें बनी थीं। मिस्र, सीरिया, लीबिया आदि देशों में साम्राज्‍यवादी पिट्ठुओं के विरुद्ध जन समर्थित सैन्‍य विद्रोह के बाद राष्‍ट्रवादी सत्‍ताएं अस्तित्‍व में आयी थीं। पर पूँजीवादी विकास के मार्ग ने कालांतर में इन सत्‍ताओं को भी भ्रष्‍ट और निरंकुश बना दिया था। इन्‍होंने भी साम्राज्‍यवाद के आगे घुटने टेक दिये थे। फिलिस्‍तीनी जनता के समर्थन का ज़ुबानी जमाख़र्च करते हुए ये सभी उसके प्रति विश्‍वासघात कर रहे थे। भ्रष्‍टाचार, निरंकुशता, मंहगाई और बेरोजगारी से समूचे अरब जगत की जनता त्रस्‍त थी।

अरब धरती से उठा जन विद्रोहों का चक्रवात साम्राज्‍यवाद-पूंजीवाद विरोधी उभार है। यह आने वाले दिनों का पूर्व संकेत है और भारत जैसे तमाम देशों के भ्रष्‍ट, लुटेरे शासकों के लिए एक संदेश है, जिनके लोकतंत्र का प्रहसन एकदम वीभत्‍स रूप में जनता की नज़रों के सामने ज़ारी है।

ट्यूनीशिया और मिस्र के जनउभार जनक्रांति नहीं है, क्‍योंकि इनके पास पूंजीवाद का सुस्‍पष्‍ट विकल्‍प नहीं है या यूं कहें कि ऐसा विकल्‍प प्रस्‍तुत करने वाला नेतृत्‍व नहीं है। फिर भी यह इतिहास का एक अग्रवर्ती कदम है। अरब जगत अब वैसा ही नहीं रह जायेगा। साम्राज्‍यवाद-पूंजीवाद को कुछ कदम हटना पड़ेगा और जनता को कुछ जनवादी अधिकार देने पड़ेंगे। फिलिस्‍तीनी जनता के संघर्ष को भी इससे नयी गति मिलेगी। इतिहास का रंगमंच फिर अगले दौर के वर्ग संघर्ष के लिए तैयार होने लगेगा और उसकी वाहक शक्तियां भी अपनी भूमिका निभाने के लिए उस रंगमंच पर उपस्थित हो जायेंगी।

ट्यूनीशिया और मिस्र के जनविद्रोहों में आम मेहनतकशों के साथ रैडिकल मध्‍यवर्गीय युवाओं की अहम भूमिका रही। स्त्रियों की भागेदारी भी ऐतिहासिक थी। यह हमारे देश के युवाओं और स्त्रियों के लिए भी एक संदेश है।

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