Friday, January 07, 2011

गुलामी एक आदत बन जाती है !


अपनी गृहस्‍थी के घोंसले को सजाती संवारती, उसकी हिफाजत के लिए चिन्तित स्‍त्री उस गुलाम के समान होती है जो जंज़ीरें काटकर मुक्‍त कर दिये जाने के बावजूद अपने दड़बे में लौट आता है क्‍योंकि आज़ादी की अनिश्चितता-असुरक्षा के बजाये उसे उस गुलामी की सुरक्षा ज्‍यादा बेहतर प्रतीत होती है जिसका वह आदी हो चुका है। वह पिंजरे के आदी उस तोते के समान होती है जो दरवाजा खुला होने पर भी बाहर नहीं उड़ता क्‍योंकि मुक्‍त आकाश से उसे डर लगता है। गुलाम औरतें गुलामी के ख़ि‍लाफ़ आवाज उठाने वाले लोगों से (स्त्रियों और पुरुषों - दोनों से) बहुत अधिक चिढ़ती और डरती हैं।

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