तीन साल बाद अनवर रोशनाबाद से निकला था ।
राबिया और रफ़ीक़ के साथ ट्रेन में
सफ़र कर रहा था ।
रिज़र्वेशन भी कराया था इसबार ।
हरिद्वार से छपरा तक लम्बा सफ़र था ।
खाना-पानी सब साथ था ।
डिब्बे में बैठा हुआ अनवर
खिड़की से सटकर खड़े सात साल के बेटे को
स्टेशन के छोर पर लगे बोर्ड पर
हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू, तीनों भाषाओं में लिखे
स्टेशन का नाम पढ़वाता था ।
बेटा पढ़ देता था जोड़-जोड़कर, थोड़ा रुक-रुककर
और राबिया निहाल हो जाती थी कि हाय रे,
इत्ता छोटा सा तो है मेरा गुड्डा और तीन ज़ुबान
पढ़-बोल लेता है ।
राबिया की ख़ाला का इंतक़ाल हो गया था
और अनवर फ़ैक्ट्री से छुट्टी लेकर
ससुराल जा रहा था बीवी-बच्चे के साथ ।
सामने की सीट पर बैठे चार लोगों में से एक ने
पहले अपनी आस्तीन चढ़ाई,
फिर मूँछों पर ताव देते हुए बोला,
हिन्दुस्तान में सिर्फ़ हिन्दी भाषा ही चलनी चाहिए ।
दूसरे ने कहा, संस्कृत जिन भाषाओं की जननी है
वो सब भी चलनी चाहिए ।
तीसरे ने कहा, हिन्दी हिन्दुओं की भाषा है
लेकिन हिन्दुस्तान में रहने वाले हर आदमी को
हिन्दी ही लिखना-बोलना चाहिए,
क्योंकि हिन्दुस्तान सबसे पहले हिन्दुओं का देश है ।
उर्दू-अरबी-फारसी पर तो एकदम बैन लग जाना चाहिए ।
किनारे बैठे आदमी के हाथ में एक हिन्दी अख़बार था
जिसमें हरियाणा के बाद बिहार के सिवान ज़िले में
गोतस्करी के शक़ में एक शख़्स को भीड़ द्वारा
पीट-पीटकर मार डालने की ख़बर थी ।
अनवर सोच रहा था कि क्या अब गाय की तरह
भाषा भी भीड़ के हाथों पीट-पीटकर
मार दिये जाने का सबब बन जायेगी!
राबिया बस डरी थी, कुछ नहीं सोच रही थी
और दूसरी ओर बैठा एम. ए. हिन्दी का एक छात्र
सिर्फ़ यह याद करने की कोशिश कर रहा था कि
भाषा के इस सवाल पर भारतेंदु, रामचन्द्र शुक्ल,
महावीर प्रसाद द्विवेदी, डा. नगेन्द्र,
हजारीप्रसाद द्विवेदी, नामवर सिंह,
और पंडित विद्यानिवास मिश्र आदि
विद्वानों के क्या विचार थे!
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#कविता_रोशनाबाद
(21 march 2023)
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