tag:blogger.com,1999:blog-1865507084516255580.post2919383726009883808..comments2023-11-11T10:14:37.451+05:30Comments on देर रात के राग: चेर्नीशेव्स्की के उपन्यास 'क्या करें?' की पात्र वेराKavita Krishnapallavihttp://www.blogger.com/profile/05805175872892962733noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1865507084516255580.post-12888758182626517152011-11-20T20:16:59.742+05:302011-11-20T20:16:59.742+05:30अगर किसी के सामने झुकने की नौबत है तो उससे प्रेम न...अगर किसी के सामने झुकने की नौबत है तो उससे प्रेम नहीं किया जा सकता।<br />जहां स्वतंत्रता का अतिक्रमण होगा, वहां प्रेम टिक नहीं सकता।<br />और आज्ञा देने वाला साथी प्रेम नहीं कर सकता।<br /><br />चूंकि स्वतंत्रता की तरह प्रेम भी मनुष्य का प्राकृतिक गुण है, इसलिए साथी की <br />मर्जी के स्वीकार का साहस खुद को अपनी नजरों में उठाने की प्रक्रिया है और एक <br />ऐसी ताकत बख्शता है जिसमें किसी तरह के छल या ढोंग की जगह नहीं।<br /><br />दूसरों की राय पर चलना ही दरअसल उस व्यवस्था का हिस्सा बनना है, जिसमें <br />धन-दौलत, वैभव, चमक-दमक आदि जीवन का पर्याय माना जाता है। यह सब हासिल करना या <br />समझौता करना बहुत आसान है, बशर्ते कि अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व का बलिदान कर <br />दिया जाए। और अपनी स्वतंत्रता के साथ, अपनी मर्जी के मुताबिक जीवन भी बहुत <br />मुश्किल नहीं है, अगर धन-दौलत, वैभव, चमक-दमक जैसी चीजों से प्रेम नहीं हो।<br />जवान होना या अनुभव की कमी होना अपने भीतर कुछ कम होना कतई नहीं है। और पूरा <br />हुआ कौन है कभी...?<br />समय अगर बदल देता है, तो बदल दे! बस इतना हो कि अपने व्यक्तित्व, अपनी <br />स्वतंत्रता को कोई नुकसान न हो।<br />और वेरा...! प्रेम हमेशा अच्छा ही लग सकता है... बस इतना हो कि अपने साथी के <br />सामने झुकने की नौबत न आए...!शेषhttps://www.blogger.com/profile/02424310084431510395noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1865507084516255580.post-45993799777611140422011-10-26T16:24:42.287+05:302011-10-26T16:24:42.287+05:30एक दम उपयुक्त पंक्तियों का चयन किया है, इस महत्वपू...एक दम उपयुक्त पंक्तियों का चयन किया है, इस महत्वपूर्ण उपन्यास से. स्त्री-विमर्श सलीके से शुरू भी नहीं हुआ था जब ये पंक्तियाँ लिखी गई थीं. वैचारिक स्पष्टता और दृढ़ता, दोनों ही देखने लायक़ हैं. बधाई.मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1865507084516255580.post-23076497708801209112011-10-25T00:47:44.831+05:302011-10-25T00:47:44.831+05:30मैं अपनी मरज़ी से, केवल अपनी मरज़ी से काम करना चाह...मैं अपनी मरज़ी से, केवल अपनी मरज़ी से काम करना चाहती हूं और यह भी चाहती हूं कि मेरा साथी भी इसी प्रकार अपनी मरज़ी से काम करे। मैं किसी दूसरे की स्वतंत्रता का अतिक्रमण नहीं करना चाहती और न ही यह चाहती हूं कि कोई पुरुष मेरी स्वतंत्रता का अतिक्रमण करे।<br />When at least 5 percent men and women realize the meaning of this statement, only then true love can come in this world. Thanks Kavita - for once again making me aware of my walls.Aasthahttps://www.blogger.com/profile/03062026125011634709noreply@blogger.com