Wednesday, July 22, 2020


अन्याय के विरुद्ध विद्रोह सबसे सुन्दर, सबसे मानवीय, सबसे न्यायसंगत, सबसे उदात्त और सबसे काव्यात्मक कर्म है !

बनिये-पंसारी घाटे-मुनाफ़े का हिसाब-किताब लगाकर किसी व्यापार में हाथ डालते हैं I न्याय के लिए संघर्ष जीत की गारण्टी लेकर नहीं किया जाता I यह नफ़ा-नुक्सान का सौदा नहीं है I कुछ दुनियादार, हिसाबी-किताबी, 'लाइमलाइट मेंटालिटी' वाले नौजवानी के फ़ौरी जोश में बिलावजह इस रास्ते आ जाते हैं, फिर जब वापस लौटकर आने-पाई के ठण्डे पानी में सड़ते जीवन में व्यवस्थित हो जाते हैं तो जीवन भर अपनी कायरता और दुनियादारी से पैदा हुई कुंठा के चलते क्रान्ति और क्रांतिकारियों को कोसते और लांछित करते रहते हैं !

हज़ारों भूतपूर्व क्रांतिकारी "वाम" बुद्धिजीवी का मुखौटा लगाए नौकरशाही, मीडिया या अकादमिक दुनिया में व्यवस्थित हैं और इस व्यवस्था के 'थिंक टैंक' का काम करने के साथ ही वाम विचारों की दुनिया में लगातार विभ्रम और मूर्खता का कचरा फैलाते रहते हैं ! उनका दूसरा क्षेत्र एन जी ओ- सुधारवाद का तंत्र होता है जहाँ वे नीति-निर्माता बनकर जा बैठते हैं और इस बात की गारण्टी करते हैं कि देशी-विदेशी पूँजी से संचालित एन जी ओ तंत्र इस व्यवस्था की तीसरी सुरक्षा-पंक्ति के रूप में ज्यादा से ज्यादा प्रभावी ढंग से काम करता रहे I ये पूँजी की अट्टालिका के आगे-पीछे के दरवाजों पर तैनात वफ़ादार कुत्ते बन जाते हैं !

जब हम वाम राजनीति के ऐसे धन्धेबाज़ व्यापारियों-पंसारियों पर हल्ला बोलते हैं तो ये सभी एकजुट होकर कटकटाकर हमारे ऊपर टूट पड़ते हैं और मुँह से कुत्सा-प्रचार का गू उगलने लगते हैं I उधर राजधानियों में कुछ ऐसे बौद्धिक-साहित्यिक "भद्रजन" भी बैठे होते हैं, जो अपने निहित स्वार्थों के चलते इन गलीज़ तत्वों के साथ अक्सर अल्पकालिक या दीर्घकालिक "प्रणय-संबंधों" में जीते रहते हैं या 'वन नाईट स्टैंड' पर जाते रहते हैं ! इन अभिजनों को भी हमारी मुंहफट कबीरी भाषा से चोट लग जाया करती है I कुछ उदारवादी-सुधारवादी बौद्धिक सिसक-सिसककर कहने लगते हैं कि इसतरह वाम अगर आपस में ही लड़ता रहेगा तो फासिज्म के विरुद्ध भला लड़ाई कैसे मज़बूत होगी ? इन बकलोलों को यह मोटी सी बात नहीं समझ आती कि फासिज्म के विरुद्ध जुझारू ज़मीनी संघर्ष संगठित करने की पहली शर्त यह है कि विभीषणों-मीरजाफरों जैसे तमाम भितरघातियों को, तमाम 'ट्रोज़न हॉर्सेज' को, तमाम रँगे सियारों, छद्म-प्रगतिशीलों और कैरियरवादियों को, "वाम" का मुखौटा लगाए तमाम भ्रष्ट-लम्पट सरकारी उच्च-पदस्थ नौकरशाहों को अपनी पांतों से बीन-बीनकर बाहर कर दिया जाए ! अगर आप सोचते हैं कि आई.ए.एस. का चयन करने वाली संस्था में बैठे किसी सत्ताधर्मी लिबरल अकादमीशियन, आबकारी और कस्टम और पुलिस महकमों के पियक्कड़-लम्पट उच्च-पदस्थ अफसर "बौद्धिकों" के साथ मोर्चा बनाकर आप फासिज्म के ख़िलाफ़ जंग लड़ेंगे, तो आप या तो परले दर्जे के भकचोन्हर हैं, या फिर फासिज्म का विरोध आपके लिए महज एक फिकरेबाजी है ! आप भी उन झींगुरों में से ही एक हैं जो अपने बिल के दरवाज़े पर बैठे तेज़ आवाज़ में चीखते रहते हैं, पर पैरों की धमक सुनाई पड़ते ही 'सुट्ट' से बिल में घुस जाते हैं !

(22जून, 2020)

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