Thursday, July 23, 2020


(वो कहते हैं न ... 'बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी' ... ! एन जी ओ पर बात निकल ही पड़ी तो मुझे साथी मनबहकी लाल की इस बेहद चुटीली कविता की याद आ गयी और फिर सोचा कि आप सभी को भी इसे पढ़वा ही दूँ I

एनजीओ आज देश के कोने-कोने में पसर गये हैं। ये किसी एक समस्या पर या कुछ समस्याओं (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य ) पर काम करने की बात करते हैं और इनकी फंडिंग मुख्यतया बड़ी बड़ी फण्डिग एजेंसियां करती है। ये सारी फंडिंग एजेंसियां बड़े बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा सीधे संचालित होती हैं जैसे फोर्ड फाउंडेशन, गेट्स फाउंडेशन, भारत में नीता अंबानी फाउंडेशन, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन आदि-आदि। ये जनता को बोलते हैं कि आप खुद अपनी समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार हैं और हम कॉर्पोरेट से लायी भीख से आपकी उस समस्या का समाधान कर देंगे। कॉर्पोरेट घराने जनता से सौ रुपये लूटकर चवन्नी वापस जनता को दान कर देते हैं और जनता के बीच ये भ्रम फैलाते हैं कि पूँजीवाद कितना संत है। एनजीओ की राजनीति पर केंद्रित यह कविता पढिए और सोचिए कि एनजीओ कितने खतरनाक हैं।)

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भिखमंगे


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भिखमंगे आये
नवयुग का मसीहा बनकर,
लोगों को अज्ञान, अशिक्षा और निर्धनता से मुक्ति दिलाने ।
अद्भुत वक्तृता, लेखन–कौशल और
सांगठनिक क्षमता से लैस
स्वस्थ–सुदर्शन–सुसंस्कृत भिखमंगे आये
हमारी बस्ती में ।
एशिया–अफ्रीका–लातिनी अमेरिका के
तमाम गरीबों के बीच
जिस तरह पहुंचे वे यानों और
वाहनों पर सवार,
उसी तरह आये वे हमारे बीच ।
भीख, दया, समर्पण और भय की
संस्कृति के प्रचारक
पुराने मिशनरियों से वे अलग थे,
जैसे कि उनके दाता भी भिन्न थे
अपने पूर्वजों से ।
अलग थे वे उन सर्वोदयी याचकों से भी
जिनके गांधीवादी जांघिये में
पड़ा रहता था
(और आज भी पड़ा रहता है)
विदेशी अनुदान का नाड़ा ।

भिखमंगे आये
अलग–अलग टोलियों में ।
कुछ ने अपने पश्चिमी वैभवशाली दाताओं की महिमा बखानी,
तो कुछ का दावा था कि वे
लुटेरों को उल्लू बनाकर
रकम ऐंठ लाये हैं
जनहित के लिए और
जनक्रान्ति की तैयारी के लिए
कुछ का कहना था कि
क्रान्ति की तैयारियों का भारी बोझ
न पड़े इस देश की गरीब जनता पर
इसलिए उन्होंने भीख से
संसाधन जुटाने का नायाब तरीका अपनाया है ।
कुछ का कहना था
कि क्रान्ति अभी बहुत दूर है
इसलिए वे तब तक कुछ सुधार ही
कर लेना चाहते हैं,
संवार देना चाहते हैं
दलितों–शोषितों–वंचितों का जीवन
एक हद तक
और फीस के तौर पर, बिना नेता–नौकरशाह
बनने का पाप किये,
खुद भी जुटा लेना चाहते हैं
घर, गाड़ी वगैरह कुछ अदना–सी चीजें
और अगर खुद वे आ गये हैं
जनता की खातिर इस नर्क जैसे देश में
तो क्या इतना भी चाहना अनुचित है
कि उनके बेटे–बेटी शिक्षा पायें
अमरीका में
कुछ का कहना था कि
अशिक्षा ही हमारे दुर्भाग्य का मूल है
अत: वे हमें शिक्षित करने आये हैं,
स्वास्थ्य और परिवार–नियोजन के बारे में
बताने आये हैं ।
कुछ का कहना था कि
हम सहकारी संस्था बनाकर
उत्पादन करें
तो हल हो जायेंगी हमारी
सारी दिक्कतें ।
कुछ ने कहा कि
जो ट्रेड–यूनियनें न कर सकीं,
वे वह कर दिखायेंगे,
राज्यसत्ता तो चांद मांगना है,
वे हमें चवन्नी–अठन्नी के लिए
नये सिरे से लड़ना सिखायेंगे ।
कुछ ने कहा कि दोष
कोर्ट–कचहरी–कानून और
सरकार का नहीं
हमारे गंवारपन का है
अत: वे हमें हमारे अधिकारों,
संविधान और श्रम–कानूनों के बारे में
पढ़ायेंगे
और जब हम जान जायेंगे कि
हमें सरकार से क्या मांगना है
तो हम मांगेंगे एक स्वर से
और हमारी याचना के तुमुलनाद
से जागकर, डरकर,
सरकार हमें दे देगी वह सब कुछ
जो हम चाहेंगे ।

भिखमंगों ने हमें लताड़ा
कि यदि सरकार अपनी जिम्मेदारियां
पूरी नहीं करती
तो हम उसका मुंह क्यों जोहते हैं
यदि वह नौकरियां नहीं देती
तो हम खुद क्यों नहीं कर लेते
कुछ काम–धाम
यदि वह सभी कारखानों को
पूंजीपतियों को दे रही है
और पूंजीपति हमें रोजगार नहीं दे रहे
तो हम स्वयं मिलकर क्यों नहीं
शुरू कर लेते कोई उद्यम
और फिर भी नहीं चलता काम
तो कम क्यों नहीं कर लेते
अपनी जरूरतें
बन्द क्यों नहीं कर देते
ऊपर की ओर देखना
चरम पर्यावरणवादी बन
चले क्यों नहीं जाते
प्रकृति की गोद में निवास करने

भिखमंगों ने बेरोजगार युवाओं से
कहा-“तुम हमारे पास आओ,
हम तुम्हें जनता की सेवा करना सिखायेंगे,
वेतन कम देंगे
पर गुजारा–भत्ता से बेहतर होगा
और उसकी भरपाई के लिए
‘जनता के आदमी’ का
ओहदा दिलायेंगे,
स्थायी नौकरी न सही,
बिना किसी जोखिम के
क्रान्तिकारी बनायेंगे,
मजबूरी के त्याग का वाजिब
मोल दिलायेंगे ।”
“रिटायर्ड, निराश, थके हुए क्रान्तिकारियो,
आओ, हम तुम्हें स्वर्ग का रास्ता बतायेंगे ।
वामपंथी विद्वानो, आओ
आओ सबआल्टर्न वालो,
आओ तमाम उत्तर मार्क्सवादियो,
उत्तर नारीवादियो वगैरह–वगैरह
आओ, अपने ज्ञान और अनुभव से
एन.जी.ओ. दर्शन के नये–नये शस्त्र और शास्त्र रचो,”
आह्वान किया भिखमंगों ने
और जुट गये दाता–एजेंसियों के लिए
नई रिपोर्ट तैयार करने में ।

भिखमंगों ने भीख को नई गरिमा दी,
भूमण्डलीकरण के दौर में
उसे अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा दी ।
भिखमंगों ने क्रान्ति और बदलाव की
नई परिभाषाएं रचीं ।
भिखमंगों ने कहा-“भूल जाओ
‘पैबन्द और कुर्ते का गीत’ ¹
वह पुराना पड़ चुका है ।
हम मांगकर लाते रहेंगे तुम्हारे लिए पैबन्द
तुम उन्हें सहेजना,
उन्हें जोड़कर एक दिन तैयार हो जायेगा
एक पूरा का पूरा कुर्ता ।
भूख से तड़पते हुए मर जाओगे
यदि समूची रोटी चाहोगे ।
हम तुम्हारे लिए मांगकर लाते रहेंगे
रोटी के छोटे–छोटे टुकड़े,
तुम उन्हें खाते जाओ
एक दिन तुम्हारे पेट में होगी
एक साबुत रोटी ।
मत करो बातें सारे कारखाने
और कोयला और खनिज और
मुल्क की हुकूमत पर कब्जे की,
ऐसी कोशिशें असफल हो चुकीं ।”
हम पूछते हैं व्यग्र होकर,
“आखिर कब तक चलेगा
इस तरह”
वह तर्जनी उठाकर हमें रोकते हैं,
“हम एक अर्जी लिख रहे हैं ।”
फिर वे एक रिपोर्ट लिखते हैं,
फिर चिन्तन करते हैं,
फिर दौरा करने किसी और दिशा में
चल देते हैं ।
हम पाते हैं, भिखमंगे नहीं वे
अपहरणकर्ता हैं
बदलाव के विचारों के, स्वप्नों और आशाओं के ।
आत्मा की ऊष्मा के खिलाफ
सतत सक्रिय
शीत की लहर हैं ये भिखमंगे ।

-- मनबहकी लाल

¹ ‘पैबन्द और कुर्ते का गीत’-ब्रेष्ट की प्रसिद्ध कविता
का सन्दर्भ

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