Tuesday, June 23, 2020

एन जी ओ ब्राण्ड सुधारवाद


परसों, 21 जून को 'एन जी ओ ब्राण्ड सुधारवाद' का विरोध करते हुए मैंने जो पोस्ट डाली थी, उसपर एक विक्षुब्ध प्रतिक्रिया देते हुए हमारी अग्रज साथी Geeta Gairola दी ने कमेंट किया कि तब तो मुझे कोरोना काल में आपदा राहत कार्य करने वाले 'दून नागरिक राहत समूह' का भी हिस्सा नहीं होना चाहिए था ! इस कमेंट का उत्तर देना मुझे इसलिए ज़रूरी लगा कि बहुतेरे लोग अक्सर हर प्रकार के सुधार या राहत कार्य को सुधारवाद मान बैठते हैं और दूसरी बात, 'एन जी ओ ब्रांड सुधारवाद' आम सुधारवाद से भी बहुत अधिक खतरनाक होता है, उसे देशी-विदेशी पूँजी ने अपनी तथा पूरी बुर्जुआ व्यवस्था की सेवा के लिए ही संगठित किया है -- इस बात को समझना आज बहुत ज़रूरी है ! एन जी ओ सेक्टर के शीर्ष थिंक टैंक अक्सर पुराने रिटायर्ड क्रांतिकारी, अनुभवी, घुटे हुए सोशल डेमोक्रेट और घाघ-दुनियादार बुर्जुआ लिबरल होते हैं जो देशी-विदेशी पूँजी की फंडिंग से जन-असंतोष के दबाव को कम करने वाले सेफ्टी वॉल्व का, एक किस्म के स्पीड-ब्रेकर का निर्माण करते हैं ! साथ ही यह रोज़गार के लिए भटकते संवेदनशील युवाओं को "वेतनभोगी समाज-सुधारक" बनाकर इसी व्यवस्था का प्रहरी बना देने वाला एक ट्रैप भी है I यूँ तो एन जी ओ नेटवर्क पूरे देश में फैला है, लेकिन झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े इलाकों के साथ ही उत्तराखंड के पहाड़ों के नाके-नाके तक ये फ़ैल गए हैं और रेडिकल राजनीतिक चेतना को भ्रष्ट और दिग्भ्रमित करने का काम भयंकर रूप में कर रहे हैं ! "कुलीन मध्यवर्गीय वामपंथ" की इनके साथ बढ़िया पटरी बैठती है और पुराने गांधीवादी-सर्वोदयी टाइप सुधारवादी भी अब इस नए सुधारवाद के सुविधाजनक रास्ते के ही राही बन चुके हैं ! हितों की इस अघोषित एकता पर कहीं से कोई सवाल नहीं उठता ! क्योंकि ऐसे असुविधाजनक सवाल उठाने वालों का हुक्का-पानी बंद कर दिया जाता है ! फिर बर्र के छत्ते में कोई क्यों हाथ डाले ? पर हमने यह जुर्रत की है, क्योंकि इस सवाल को आज नए सिरे से उठाना नए जुझारू जनांदोलनों की ज़मीन तैयार करने के लिए ज़रूरी है !

कामरेड Chandra Prakash Jha ने सुझाव दिया कि इस मुद्दे पर हुए संवाद को एक स्वतंत्र पोस्ट के रूप में डाल दिया जाए ताकि यह बात एन जी ओ में कार्यरत युवाओं की भारी संख्या तक और अन्य बुद्धिजीवियों तक भी पहुँचे और वे भी इस मुद्दे पर सोच सकें और संवाद कर सकें ! यह सुझाव मुझे उचित लगा और उसपर अमल करते हुए गीता दी के साथ हुए संवाद को यहाँ मैं एक स्वतंत्र पोस्ट के रूप में प्रस्तुत कर रही हूँ !

Geeta Gairola दी बेहद जनतांत्रिक प्रकृति और खुले विचारों वाली अनुभवी साथी हैं ! वह मतभेदों, बहसों और संवादों का सम्मान करती हैं और ऐसी शख्स हैं जिनके साथ कई मतभेदों के बावजूद एक न्यूनतम आम सहमति बनाकर कामरेडाना माहौल में काम किया जा सकता है I इसीलिये उन्होंने भी बेलागलपेट अपनी बात रख दी और मैंने भी उसी भरोसे के साथ अपने दो-टूक विचार यहाँ रख दिए हैं !

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Geeta Gairola कविता तुम्हे फिर दून राहत समूह का हिस्सा नहीं बनना चाहिए था।बुरा लगेगा तो कोई बात नहीं।मैंने अपनी बदतमीजियों से बहुत लोगों को खोया है।अब थोड़ा सा पाने का सुख तो होता है खोने का दुख नहीं होता

Kavita Krishnapallavi Geeta दी ! कुछ बातों को स्पष्ट कर लेना बेहद ज़रूरी है ! पहली बात, 'दून राहत समूह' अपने आप में कोई एन.जी.ओ. नहीं है ! कोरोना काल में प्रवासी मज़दूरों और अन्य आपदाग्रस्त मज़दूरों तक फौरी सहायता पहुंचाने के लिए कुछ गणमान्य नागरिकों और 'उत्तराखंड महिला मंच' एवं 'उत्तराखंड पीपल्स फोरम', 'नौभास', स्त्री मुक्ति लीग आदि जन-संगठनों की पहल पर इसका गठन किया गया था ! मुझे नहीं पता, इसमें कुछ फंडिंग एजेंसियों से वित्त-पोषित एन जी ओ भी शामिल हो गए हों, यह मुमकिन है, पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ! फौरी तौर पर किसी भीषण आपदा की स्थिति में किसी सुधार या राहत कार्य में अगर किसी एन जी ओ के साथ भी खड़ा होना पड़ता है तो जाहिर है कि इसमें हमें कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि यह विचारधारात्मक प्रश्न नहीं है I इससे तमाम देशी-विदेशी फंडिंग एजेंसियों से वित्तपोषित एन जी ओ'ज की प्रतिगामी भूमिका के प्रति हमारी राय में कोई फर्क नहीं पड़ता ! यह कुछ वैसा ही है जैसे तमाम बुर्जुआ चुनावबाज़ पार्टियों के साथ हम कोई मोर्चा नहीं बनाते लेकिन दमन-उत्पीडन या जनवादी अधिकारों के हनन के किसी फौरी सवाल पर उनके साथ, या उनके लिए, खड़ा होने में भी हमें कोई गुरेज़ नहीं होता I यह बहुत साफ़-सी बात है I एन जी ओ की धारणा को भी स्पष्ट कर लेना बहुत ज़रूरी है I पहली बात, जन-संगठन (Mass Organization) और संस्था (Institution) दो चीज़ें होती हैं ! अगर सख्त क़ानूनी परिभाषा के हिसाब से देखें तो सभी पंजीकृत या गैर-पंजीकृत गैर-सरकारी संस्थाएँ -- ट्रस्ट, सोसाइटीज आदि ... -- एन जी ओ कहलाएंगी I पर हमारा तात्पर्य देशी-विदेशी पूँजी- प्रतिष्ठानों द्वारा स्थापित फंडिंग एजेंसियों द्वारा वित्त-पोषित उन दैत्याकार देशव्यापी ढांचों वाले एन जी ओ'ज से है जो भारत ही नहीं, पूरी तीसरी दुनिया -- एशिया, अफ्रीका, लातिन अमेरिका के देशों में अपने पंजे फैलाए हुए हैं !

बहुत सीधा सवाल है कि मुनाफे के लिए मज़दूरों की हड्डियां निचोड़ने वाले और दुनिया को बार-बार विनाशकारी युद्धों में धकेलने वाले साम्राज्यवादी-पूंजीवादी लुटेरों में इतनी मानवता भला क्यों जाग उठती है कि वे गरीब देशों के बच्चों की भूख मिटाने, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और औरतों की खुदमुख्तारी और आज़ादी के लिए इतने चिंतित हो उठते हैं कि इस काम में सालाना अरबों डॉलर लगा देते हैं ! इसपर सैकड़ों शोध-पत्र और दर्ज़नों किताबें छप चुकी हैं ! पहली बात तो 172 वर्षों पहले कार्ल मार्क्स ने ही स्पष्ट कर दी थी कि दमित-उत्पीडित मज़दूर वर्ग की विकासमान वर्ग-चेतना को कुंद और भ्रष्ट करने के लिए दुनिया भर का पूँजीपति वर्ग अपने निचोड़े गए अधिशेष का एक छोटा-सा हिस्सा सुधार और चैरिटी के कामों पर खर्च करता है I यानी एन जी ओ नेटवर्क का मुख्य काम है वर्ग-संघर्ष के उभारों को रोकना, उनकी भड़कती आँच पर पानी के छींटे मारते रहना ! ये सभी एन जी ओ तीसरी दुनिया के गरीब देशों में इसलिए काम करते हैं क्योंकि यहींपर शोषण-उत्पीडन ज्यादा है और पश्चिम के पूँजीवादी "स्वर्गों" की अपेक्षा क्रान्ति की आग भड़कने का खतरा इन देशों में सबसे अधिक है I जबसे नव-उदारवाद का दौर चला है और राज्य ने किन्सियाई नुस्खों से पीछे हटाते हुए सार्वजनिक राशन-वितरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीब-कल्याण की सभी योजनाओं से हाथ खींचना शुरू कर दिया है, तबसे इन बुनियादी जन-अधिकारों को भीख, दान और दया-धरम की चीज़ बना देने वाले एन जी ओ'ज की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है I एक और काम एन जी ओ वाले यह करते हैं कि बहुत सारे संवेदनशील और ज़हीन युवाओं को "समाज बदलने" का एक सुगम मार्ग बता देते हैं,"वेतनभोगी बनकर कुछ राहत और सुधार के काम करते रहो, मन को तसल्ली देते रहो, क्रांति-व्रांति के जोखिम, तकलीफ और अनिश्चितता भरे काम में ज़िंदगी और कैरियर क्यों तबाह करोगे?' मध्यवर्गीय नौजवानों का एक बड़ा हिस्सा जो बेरोजगारी से परेशान होता है, वह लाखों की तादाद में इस एन जी ओ नेटवर्क में सर्वेयर, मुलाजिम आदि बनाकर बेरोजगारी भत्ते बराबर उजरत में ज़िंदगी काट देता है और रोज़गार के अपने जनवादी अधिकार पर संगठित होकर लड़ने के रास्ते से विरत हो जाता है I यह तो हुआ एन जी ओ'ज का राजनीतिक लक्ष्य ! इसपर भी बहुत साहित्य मौजूद है कि किसप्रकार एन जी ओ अपने आप में बुर्जुआ उत्पादन का एक ऐसा सेक्टर बन गया है, जिसमें सहकारिता आदि का गठन करके श्रमशक्ति का अपार दोहन किया जाता है और विशेषकर स्वावलम्बिता के नाम पर स्त्रियों को ठगा जाता है Iइसके अतिरिक्त एन जी ओ बड़ी पूँजी के लिए बाज़ार-विकास की संभावनाओं का अध्ययन करने और सस्ता श्रम-बाज़ार विकसित करने का भी काम करते हैं ! किसतरह एन जी ओ'ज के ज़रिये बिना लोगों को खतरों और दुष्प्रभावों के बारे में बताये हुए, फार्मास्यूटिकल कम्पनियां दवाओं का परीक्षण करती रही हैं और आम अशिक्षित गरीबों ने उसकी क्या कीमत चुकाई है, इसपर पिछले तीस वर्षों के दौरान दर्ज़नों रपटें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं ! बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के काले कारनामों के बारे में आज भला कौन नहीं जानता ?

दुनिया में सांता क्लाज़ का चेहरा लिए घूमने वाले कई विशाल अमेरिकी फंडिंग एजेंसियों और एन जी ओ'ज का वहाँ के मिलिट्री इंडस्ट्रियल काम्प्लेक्स से कितना गहरा रिश्ता है और बहुत "कल्याणकारी बुर्जुआ जनवादी" देश माने जाने वाले स्कैन्देनेवियन देशों की फंडिंग एजेंसियां और एन जी ओ'ज किस तरह वहाँ की फार्मा कंपनियों और हथियार कंपनियों के लिए काम करते हैं, इसपर भी काफी सामग्री और दस्तावेज़ उपलब्ध हैं ! ऐसी बातें केवल क्रांतिकारी वामपंथी कहते हों ऐसी भी बात नहीं है I प्रो. जेम्स पेत्रास और प्रो. हेनरी वेल्तमेयर ने इन एन.जी.ओ'ज के वैचारिक-राजनीतिक कामों के बारे में काफी कुछ लिखा है ! कोई भी जेम्स पेत्रास की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाकर पढ़ सकता है ! जेम्स पेत्रास ने तो विस्तार से यह भी बताया है कि वर्ग-संघर्ष की राजनीति को हाशिये पर डालने के लिए किसतरह अमेरिका के बुर्जुआ 'थिंक टैंक्स' ने 'आइडेंटिटी पॉलिटिक्स' की सैद्धांतिकी विकसित की और उसे तीसरी दुनिया की शोषित-उत्पीडित आबादी तक पहुंचाने के लिए मुख्य वाहक की भूमिका एन.जी.ओ'ज ने निभाई ! एन जी ओ'ज़ किसतरह संत का मुखौटा पहने साम्राज्यवादियों और उनके जूनियर पार्टनर देशी पूँजीपतियों के खूनी पंजों पर चढ़े सफ़ेद दस्ताने की भूमिका निभा रहे हैं, इसपर 'मंथली रिव्यू' पत्रिका की नियमित लेखिका जॉन रोयलोव्स भी अबतक कई गंभीर और विस्तृत लेख लिख चुकी हैं ! उनमें से कुछ उनके ब्लॉग 'आर्ट एंड एस्थेटिक्स' पर भी मौजूद हैं जिन्हें कोई पढ़ सकता है I और भी कई राजनीतिक लेखकों और अकादमीशियनों ने इनके काले कारनामों के बारे में लिखा है ! भारत में 1980 के दशक के अंत में ही साम्राज्यवादी एजेंटों के रूप में एन जी ओ की भूमिका पर बहुत अधिक दस्तावेजी साक्ष्यों और तथ्यों के साथ पी.जे.जेम्स की पुस्तक आ चुकी थी ! 'राहुल फाउंडेशन' से भी हमलोग 'एन जी ओ :एक खतरनाक साम्राज्यवादी कुचक्र' लेख-संकलन दो दशक से भी अधिक समय पहले प्रकाशित कर चुके हैं जिसके कई संस्करण हो चुके हैं ! रा.फ़ा. से ही एक पुस्तक 'वर्ल्ड सोशल फोरम' पर भी छपी है जो मुख्यतः एन जी ओ'ज के विश्वव्यापी जाल और उसकी राजनीति को ही एक्सपोज़ करती है ! रा. फ़ा. से ही प्रकाशित उपन्यास 'एक तयशुदा मौत भी एन जी ओ की राजनीति और उसके अन्तःपुरों में व्याप्त घटिया षडयंत्रकारी राजनीति पर केन्द्रित है ! इस उपन्यास के लेखक स्वयं एन जी ओ में काम करते थे ! एन जी ओ में ही काम करने वाले योगेश दीवान की भी एक पुस्तक है,'दास्ताने-स्वयंसेविता'!

एक और भ्रम का निवारण ज़रूरी है ! कुछ लोग सोचते हैं कि हर प्रकार के सुधार के काम अपने आप में एन जी ओ टाइप काम हैं और क्रांतिकारी इन कामों से परहेज़ करते हैं या इन्हें गलत मानते हैं ! यह भ्रांत धारणा अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आन्दोलन और क्रांतियों के इतिहास की नाजानकारी से पैदा हुई है ! चूंकि भारत के संशोधनवादी कम्युनिस्ट चुनाव लड़ने और अर्थवादी-ट्रेड-यूनियनवादी कामों के अतिरिक्त सामाजिक आन्दोलन के काम करते ही नहीं, इसलिए उनका आचरण देख-देखकर कुछ लोग कम्युनिस्टों के बारे में ही गलत धारणा बना लेते हैं ! कम्युनिस्ट आम जनता के बीच राजनीतिक और आर्थिक कामों के साथ-साथ सामाजिक आन्दोलन, सामाजिक और आर्थिक सुधार के भी काम करते हैं और विविध रचनात्मक गतिविधियाँ करते हैं ! सुधार और सुधारवाद में उसीतरह से बुनियादी फर्क है जैसे आर्थिक काम और अर्थवाद में, या ट्रेड-यूनियन कार्य और ट्रेड यूनियनवाद में ! क्रांतिकारी जब सुधार का काम करता है तो उसका मक़सद जनता से निकटता बनाना, उसकी पहलकदमी जगाना, उसे रूढ़ियों से मुक्त करना, उसकी चेतना उन्नत करना या आपदा की स्थिति में उसे फौरी मदद पहुंचाना होता है I क्रांतिकारी के लिए सुधार-कार्य वर्ग-संघर्ष के लिए जन-लामबंदी की प्रक्रिया का एक अंग है, जबकि सुधारवादी के लिए सुधार ही परम लक्ष्य है ! एन जी ओ सुधारवाद का लक्ष्य जनता की क्रांतिकारी चेतना के विकास को रोकना, उसकी वर्ग-चेतना को कुंद करना और उसे सुधारों के गुंजलक में ही फंसाए रखना है ! मैं समझती हूँ कि बहुत संक्षेप में ही सही, एन जी ओ के सवाल पर मैंने हमलोगों का स्टैंड काफी स्पष्ट कर दिया है !

(23जून, 2020)

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(जी, मैं एन.जी.ओ. ब्राण्ड सुधारवाद से तहे-दिल से नफ़रत करती हूँ ! जब हक छीने जा रहे हों और लोग कुचले जा रहे हों तो अवाम को अपने हक के लिए लड़ने की शिक्षा देने और राह बताने की जगह राहतें बाँटने वाले, मलहम लगाने वाले, तसल्ली देने वाले लोग सबसे कुटिल और बदमाश लगते हैं ! दया, करुणा, रहम,,, --- ये सभी शब्द एक शोषण-उत्पीडन भरी दुनिया में गू के माफिक घिनौने लगते हैं ! अन्याय से भरी दुनिया में सबसे मानवीय, सबसे उदात्त, सबसे सुन्दर शब्द है संघर्ष, हर कीमत पर संघर्ष ! जब ज़ुल्मों की धारासार बारिश हो रही हो तो तनकर खडा होने से सुन्दर इंसान की कोई मुद्रा नहीं हो सकती ! शांतिवाद जनता को निश्शस्त्र और बेबस बनाता है !

लुटेरों से ही ग्रांट लेकर गरीबों में राहत बाँटने वाले ये लोग मासूम और मानवतावादी नहीं हैं ! ये रोटी और सुविधाओं की खातिर बिक चुके लोग हैं ! जो जनता को अपने हक के लिए लड़ने की जगह राहत और दान पर जीने का आदी बनाता है, वह जनता का सबसे खतरनाक दुश्मन है ! वह भिखमंगे से भी गया-गुजरा है ! वह धनपतियों के दुआरे हड्डी अगोरता बैठा खजुहा कुत्ता है !

आश्चर्य नहीं कि एन.जी.ओ. पंथ के अन्तःपुरों से लेकर गलियों-कूचों तक चक्कर लगाते लोगों में आपको रिटायर्ड और छद्म-वामपंथी बहुतायत में देखने को मिल जायेंगे ! वाम आन्दोलन के भगोड़े और पथ-च्युत लोग आम लोगों में निराशा और संशय फैलाने वाले और संभ्रम-दिग्भ्रम-मतिभ्रम पैदा करने वाले सांघातिक विषाणु होते हैं !)
(पुरानी पोस्ट एक बार फिर)

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