उदास तो मैं भी कई बार बहुत अधिक हो जाती हूँ। संघर्ष का लम्बा होना, लक्ष्य का दूर होना या विफलता और हार से कभी हताशा-उदासी नहीं घेरती। क्रान्तिकारी सामाजिक बदलाव और साहित्य-कला की उदात्त मानवीय दुनिया में क्षुद्र, मानवद्रोही, कैरियरवादी, कायर, बौने विदूषकों की धमाचौकड़ी देखकर कभी कभी सघन अवसाद घेर लेता है। पर फिर जल्दी ही उदासी को आत्मिक शक्ति और घृणा में ढालकर सत्ता से और बदमाश अवसरवादी रंगे सियारों से मोर्चा लेने में भिड़ जाती हूँ। प्रकृति, साहित्य और अच्छे दोस्तों की संगत को छककर जीती हूँ। मरने की तो मैं सोच भी नहीं सकती। जिंदगी तमाम कमियों-परेशानियों सहित बहुत प्यारी है। मुझे 200 वर्ष जीना है।
कामरेडो ! बहुत अवसादग्रस्त हो? मेरे साथ आम लोगों की जिंदगी की जद्दोजहद के बीच चलो! मेरे पास ताजगी और जिजीविषा का वायरस है! संक्रमित हो जाओगे।
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हर आत्महत्या पूँजीवाद द्वारा की गयी हत्या होती है -- सिस्टेमिक मर्डर! जब एलियनेशन हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो जीना बेमानी लगने लगता है । ज़िन्दगी को एक मक़सद देने का सबसे बढ़िया रास्ता है इस हत्यारी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ने को ही जीना बना लेना।
(14जून, 2020)
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