छोटी-छोटी बातें
हज़ारों दुख गाथाएँ
समझने में सीधी और आसान
कहीं सिर्फ़ एक या दो मामूली सी
पहचान।
धूलकण
एक पेड़ का गिरना
कहीं से थोड़ा सा रिसाव ,
चूल्हे का ऊष्म धुआँ।
हमारी आवाज़ शर्मिन्दा होकर
छुप जाती है मशीनों के बाज़ार में ।
सिर्फ वेदनाएँ
दुख की गाथाएँ
चलती रहेंगी अनंत काल तक
या
हम उठ खड़े होंगे
अंतिम क्षणों में?
अन्त नहीं होगा
जहाँ अन्त होना था,
वहीं शुरुआत की सुबह खिल उठेगी।
-- शंकर गुहा नियोगी
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