Monday, September 16, 2019


यहाँ उल्टी खोंपड़ी वालों की भरमार है ! जब कोई गंभीर मुद्दा उठाया जाए तो निहायत चलताऊ ढंग से लेते हैं और अगर कोई हलकी-फुल्की, हँस लेने लायक बात कहो तो चिन्तक-मुद्रा धारण कर लेते हैं, या बाल की खाल निकालने लगते हैं !

मेरा तो मानना यह है कि जो संजीदा और गंभीर लोग होते हैं, वास्तव में 'सेंस ऑफ़ ह्यूमर' भी उन्हीं के भीतर होता है ! हलके किस्म के ठिठोलीबाज़ों में शालीन और गहरा 'सेंस ऑफ़ ह्यूमर' नहीं होता ! बनावटी व्यक्तित्व वाले और मिथ्या अहंकारी और 'टची' लोगों में भी 'सेंस ऑफ़ ह्यूमर' का घोर अभाव होता है !

परिष्कृत और नफ़ीस 'सेंस ऑफ़ ह्यूमर' के लिए तार्किक और डेमोक्रेटिक होना ज़रूरी होता है ! यानी 'सेंस ऑफ़ ह्यूमर' एक आधुनिक ज़ेहनियत वाला शहरी होने की निशानी है ! प्राक-आधुनिक या मध्यकालीन मानसिकता चुटकुलेबाज़ी की होती है, ठिठोली की या मजाक में फिज़िकल होने की होती है, या सामने वाले के व्यक्तित्व का अवमूल्यन करके मज़ा लेने की होती है ! आधुनिक बुर्जुआ समाज का 'सेंस ऑफ़ ह्यूमर' एकदम दीगर चीज़ होता है !

अच्छा 'सेंस ऑफ़ ह्यूमर' विकसित करने के लिए चीज़ों की बारीकी में जाने की तमीज़ डेवेलप करनी होती है, आधुनिक, तार्किक और डेमोक्रेटिक बनना होता है ! अच्छे 'सेंस ऑफ़ ह्यूमर' के लिए 'वर्ल्ड क्लासिक्स' पढ़ना चाहिए ! शेक्सपियर, सर्वान्तेस, दिदेरो, मार्क ट्वेन और जार्ज बर्नार्ड शॉ को तो ज़रूर पढ़ना चाहिए !

अब आप बताइये कि उनलोगों का क्या किया जाये जो किसी बेहद गंभीर बात पर ठहाका लगाने का इमोजी चेंप देते हैं, या किसी हँसी-मज़ाक की बात पर उदास होने, गुस्सा होने या चकित हो जाने का इमोजी ठोंक देते हैं या गंभीर चिंतन की मुद्रा में विमर्श छेड़ देते हैं !🤔🤔🤔🤔

(5सितम्बर, 2019)


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क्या भारतीय न्यायपालिका का पतन 1933-1945 की उन जर्मन रसातली गहराइयों तक नहीं जा पहुँचा है ? या कोई कसर अभी बाकी रह गयी है ?

(5सितम्बर, 2019)


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विक्रम लैंडर फेल हो गया, पर बेताल लैंडर तो 2014 में जो भारतीय जन की पीठ पर लैंड किया तो अभीतक लदा हुआ है ! तिलिस्मऔर ऐय्यारी की तरह-तरह की गपोड़ी कहानियाँ सुना रहा है और देश को ब्रह्मराक्षस की भुतही बावड़ी की तरफ लिए जा रहा है, तरह-तरह के भुलावे देते हुए !

अनुभवी ओझा-गुनी का कहना है कि इस बेताल को सिर्फ पीठ से उतार भर देने से कुछ नहीं होगा ! श्मशान में खड़े पीपल के उस पेड़ को ही काट देना होगा, जिसकी डाल पर इसका स्थायी बसेरा है, क्योंकि पीठ से उतारे जाने पर भी यह उस डाल से जाकर लटक जाया करेगा और फिर से पीठ पर लैंड कर जाने के मौके तलाशता रहेगा !

(7सितम्बर, 2019)


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गली क्रिकेट में टीम का बारहवाँ खिलाड़ी नाली से गेंद निकालकर लाने का काम करता है । संघी खेल में आठवले, पासवान आदि दलित नेता और नक़वी और शाहनवाज़ जैसे मुस्लिम नेता यही भूमिका निभाते हैं।

(9सितम्बर, 2019)








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