Saturday, August 24, 2019

एक युद्ध बरस रहा है दिन-रात हमारे सिरों पर !

एक युद्ध बरस रहा है दिन-रात हमारे सिरों पर !

एक युद्ध जारी है दिन-रात, देश के भीतर, देश के ही आम बाशिंदों के ख़िलाफ़,और जैसे कहीं कोई खबर नहीं है I दिन-रात की बारिश की तरह बरस रहा है यह युद्ध ! कुछ लोग छाता लगाये, बरसाती पहने सौदा-सुलफ कर रहे हैं और ज्यादातर लोग घरों में बंद हैं I

कुछ गोष्ठियाँ भी हो रही हैं, कुछ पुरस्कार-वितरण समारोह भी, और कुछ कालजयी रचनाएँ भी लिखी जा रही हैं इस दौरान I

यह युद्ध जो धीरे-धीरे शीत-युद्ध से ऊष्ण युद्ध में बदलता जा रहा है, कुछ लोगों ने सत्तासीन होने के पहले से ही छेड़ रखा था और सत्ता में आने के बाद उसे एक आततायी तूफ़ान की गति दे दी थी !

वे कह रहे हैं कि यह युद्ध अतीत के अपमानों के विरुद्ध है, पर यह दरअसल इतिहास को निमित्त मात्र बनाते हुए भविष्य के विरुद्ध है I

वे कह रहे हैं कि बरसों से बहुसंख्यक लोगों के बीच, उनके आसपास रह रहे कुछ अल्पसंख्यक लोग बहुसंख्यकों के ख़तरनाक दुश्मन है, इसलिए उनसे सारा हिसाब-किताब चुकता करना है अतीत के किन्हीं हमलावर बादशाहों का और उनकी फौजों का और इतिहास का कर्ज़ चुकाना है I

वे कहते हैं कि अतीत में हम सबकुछ कर चुके हैं, अतः अब बस अतीत का प्रेत जगाना है जो धार्मिक श्मशान की पीपल की डाल पर टंगा हुआ है, और उस प्रेत की पीठ पर सवार होकर प्रगति के शिखरों की यात्रा करनी है I

वे संस्कृति को बर्फ़ की सिल्लियों पर सुलाकर उसके तलवों पर चाबुक बरसा रहे हैं, वे सोते हुए लोगों के आँखों के सपने खुरच रहे हैं, वे तर्क और विज्ञान का कीमा कूटकर उसे पुरातन पूर्वी मसालों में फेंट रहे हैं और धीमी आँच पर सेंक रहे हैं I

वे अखण्ड बनाने के लिए देश को खण्ड-खण्ड कर रहे हैं ! उनका मक़सद दरअसल आम लोगों की एकता को खण्ड-खण्ड करना है और उनके भविष्य को भरभंड करना है I

यह युद्ध धीमे ज़हर की तरह निराश, बेहाल, बौखलाए लोगों की धमनियों-शिराओं में चढ़ता है, यह साइबर आकाश से दिन-रात हमारी चेतना पर बरसता है और देश में कभी यहाँ कभी वहाँ, सड़कों पर, गलियों में जब लहू बनकर कलकल-छलछल बहता है तो बहुत कम लोगों को कुछ दिखाई देता है, बहुत कम लोगों को कुछ सुनाई देता है I

यह युद्ध दिन-रात लोगों को अपनी ज़मीन से दर-बदर करता है, खेतों को बंजर बनाता है, कारखानों को भूतों के डेरे में तब्दील कर देता है और सड़कों पर खड़े बेघरों-बेकारों को देश-रक्षा के लिए, धर्म-रक्षा के लिए, पकौड़े छानने के लिए या कांवड़ ढोने के लिए उकसाता है I

यह युद्ध रह-रहकर पूरे देश में धूल और राख की आँधी लाता है, लोगों पर कभी शब्द तो कभी बुलेट तो कभी पेलेट तो कभी नींद और नशा बरसाता है I लोग जब बस अपने बचाव के बारे में सोचते हैं तो उन्हींकी तजवीजों पर गौर करते हैं जो यह युद्ध छेड़े हुए हैं !

जब बस्तियों पर धूल और राख के साथ झूठ और घोषणाएँ और गोलियाँ बरस रही होती हैं तब कुछ द्वीपों पर बस सोने की गिन्नियाँ बरस रही होती हैं I

सबसे अहम बात यह है कि यह युद्ध जब लगातार जारी है और तेज़ होता जा रहा है तो इसका विरोध बौद्धिक समाज के बहुत कम लोग कर रहे हैं और उतना और उसतरह नहीं कर रहे हैं, जितना और जिसतरह करना चाहिए !

कुछ लोग दोपहर की खुशनुमा नींद लेने के बाद अपने बरामदे में बैठे कॉफ़ी पीते हुए इस युद्ध के विरोध में एक वक्तव्य जारी करने के बारे में सोच रहे हैं I कुछ लोग एक मोमबत्ती जुलूस निकालकर या ऑनलाइन एक हस्ताक्षर-अभियान चलाकर अपनी आत्मा को कर्तव्य-पूर्ति के संतोष और आत्मगौरव की मीठी नींद देना चाहते हैं I कुछ लोग कुछ अदालती फैसलों और कुछ चुनावों का उम्मीद और धीरज के साथ इंतज़ार कर रहे हैं I उधर बर्बरता और उन्माद की अदृश्य बमबारी से झुलसे और घायल लोगों का कारवां चुपचाप सड़कों से गुजरता जा रहा है I

इसी बीच कुछ कवि गण पहाड़ों में और कुछ विदेश अपने बच्चों के पास आराम करने चले गए हैं ताकि तरोताजा होकर लौटने के बाद इस युद्ध से शान्ति की ओर यात्रा की कोई शांतिपूर्ण राह निकाल सकें !

हर युद्ध की तरह इस युद्ध का भी अंत होगा लेकिन जो लोग अपनी चुप्पी, तटस्थता, समझौतापरस्ती और खुदगर्जी से इसकी उम्र लम्बी कर रहे हैं और अपनी कायरता के चलते इसे नैतिक मान्यता दे रहे हैं, वे इतिहास के शाप से कैसे बच पायेंगे और अपने बच्चों से कैसे नज़रें मिला पायेंगे ?

(22अगस्‍त, 2019)

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