Friday, February 22, 2019


मैं मानती हूँ, भूख और अभाव कभी-कभी कुछ लोगों को तोड़ देते हैं और वे समझौते कर लेते हैं I गद्दारी भी कर जाते हैं I

लेकिन साहित्य-कला और विचारों की दुनिया में इनदिनों जो लोग इस हद तक सत्ताधर्मिता का प्रदर्शन कर रहे हैं कि फासिस्टों के सफ़ेद दस्ताने चढ़े खूनी हाथों को हाथ में लेकर सिर से लगा रहे हैं, कि दंगाइयों-हत्यारों-बलात्कारियों-दल्लों-गुंडों-लफंगों की सत्ता के साथ सांस्कृतिक जुगलबंदी कर रहे हैं; इनमें से 95 फ़ीसदी लोग हिन्दुस्तान की आम आबादी से काफ़ी ऊपर का जीवन जीते हैं, आर्थिक दृष्टि से बेहद सुरक्षित और सुविधापूर्ण जीवन जीते हैं I

ये कैरियरवाद के उन्माद से ग्रस्त लोग हैं I ये मूल्य-स्खलित और बेहद घटिया-मक्कार किस्म के लोग हैं जो जीने के लिए नहीं, यश, प्रतिष्ठा, ख्याति और पुरस्कारों के लिए अपने घोषित आदर्शों व प्रतिबद्धताओं की ह्त्या कर रहे हैं, जनता के स्वप्नों और संघर्षों के साथ जघन्य विश्वासघात कर रहे हैं ! ये इतिहास के अपराधी हैं !

वैसे एक ऐतिहासिक महाकलंक से वे लोग भी नहीं बच पायेंगे जो इन घृणित अवसरवादियों के साथ चतुराई या कायरता के कारण उदारता बरतते हैं,अक्सर इनके कुकर्मों पर चुप रहते हैं, बुरा बनाने से बचाते हैं, और कभी-कभी जब हद हो जाती है तो दबी जुबान से नरम आलोचना कर देते हैं और फिर कुछ दिनों बाद मामला जब ठंडा पड़ जाता है तो उन्हींके साथ बैठकर रसरंजन करने लग जाते हैं I इतिहास के कटघरे में ऐसे दुनियादार चतुर-सुजान भी खड़े किये जायेंगे !

(19फरवरी, 2019)

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