Wednesday, January 30, 2019


मार्क ट्वेन ने कहा है कि मूर्खों से बहस में मत उलझो, वे तुम्हें अपने स्तर पर घसीट ले जायेंगे और फिर अपने अनुभव के डंडे से तुम्हारी पिटाई कर देंगे ! हमारे समाज में अनुभव के डंडे के साथ ही ओहदे और सामाजिक रुतबे और डिग्रियों का डंडा भी खूब चलता है I किसी अफसर लेखक से बहस कीजिए और उसका प्रतिवाद या आलोचना कर दीजिये ! फिर उसका लाल-भभूका चेहरा और तमतमाहट देखिये ! दरअसल वह अन्य साहित्यकारों को भी अपने मातहत मुलाज़िम जैसा ही समझता है ! प्रतिवाद सुनना उसकी आदत नहीं होती और दांत चियारकर उसकी हाँ में हाँ मिलाने वाले भी कम नहीं होते I इसी तरह किसी यूनिवर्सिटी में हिन्दी साहित्य पढ़ाने वाले किसी मास्टर से "प्राध्यापकीय" आलोचनाओं और पी-एच.डी., एम.फिल. आदि के लिए कराये जाने वाले शोधों आदि की स्तरहीनता को लेकर बात कीजिये !
फिर उनके मुखारविंद से झरने वाले तर्क-पुष्पों को इकट्ठा कर लीजिये ! बीच-बीच में उनका अवलोकन करने से मनोरंजन होता रहेगा !

(28जनवरी, 2019)

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