Tuesday, January 29, 2019


मेरी दोस्त के पड़ोस में जो आंटीजी रहती हैं, वह अपनी हमउम्र औरतों के साथ बैठकर भजन-कीर्तन या मोहल्ले की बहुओं और युवा लड़कियों की शिकायत बतियाने पर ज़रा भी समय नहीं खर्च करतीं I सुबह एक घंटा अख़बार पढ़ती हैं, सभी पार्टियों की आलोचना करती हैं और मोहल्ले की गतिविधियों और लोगों का बारीक ऑब्जरवेशन करके कुछ नीति-वाक्य और आप्तवचन बोला करती हैं I

एक दिन बोलीं," बेटा, ज़िंदगी को मस्त होकर जीना है तो तीन बातों का ध्यान रखना ! पहला, किसी की नक़ल मत करो ! दूसरा, किसी से जलन-कुढ़न मत पालो ! तीसरा, किसी से होड़ मत किया करो, अपना काम यथाशक्ति करके खुश रहा करो !" फिर अपनी ही छोटी बेटी का उदाहरण देती हुई बोलीं,"अब श... को ही ले लो ! हरदम उसका पेट खराब रहता है... कभी कब्ज़, कभी दस्त, कभी एसिडिटी, कभी माइग्रेन ! डॉक्टर भी सारे थक गए ! मैं जानती हूँ, वह कभी ठीक नहीं होगी I वजह यह है कि वह हरदम कभी इसकी तो कभी उसकी नक़ल करती रहती है, कभी किसी से तो कभी किसी से जलती-कुढ़ती रहती है और किसी न किसी से होड़ करती रहती है ! उसमें न कोई ओरिजिनैलिटी है, न उसके मन में अच्छे-सुन्दर ख़यालों के लिए कोई जगह है I बेटा, यूँ समझ लो कि अगर तुम टुच्चे हो तो सबसे अधिक इसकी क़ीमत तुम्हीको चुकानी है !"

मैं सोच रही थी कि आंटीजी अपनी पीढ़ी की स्त्रियों से कितनी आगे हैं ! हमलोगों को तो अपने अनुभव के पिटारे से कुछ न कुछ निकालकर अक्सर देती रहती हैं ! आम लोगों की बातों पर यदि गौर किया जाये तो ज़िंदगी के लिए बहुत ज़रूरी नसीहतें राह चलते मिल जाया करती हैं ! जनता इसीतरह हमें सिखाती है !

(26जनवरी, 2019)

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