Friday, January 25, 2019

बर्बर समय में सीखना प्यार करना

बर्बर समय में सीखना प्यार करना

(मैं भी चाहती थी
प्यार करने की कूव्वत हासिल करना !
और हम सभी जानते हैं कि
ऐसा कैसे होता है !
आहिस्ता-आहिस्ता !
-- मैरी ओलिवर)
....



मैं भी चाहती थी

प्यार करने की कूव्वत हासिल करना

एक बर्बर हत्यारे समय में जीते हुए ,

पकते और सीझते हुए,

कुछ सपने और मंसूबे बुनते और गुनते हुए !

पहले मैंने छोटे सपने देखे,

छोटी-छोटी यात्राएँ कीं

और मुझपर कायरता, स्वार्थ और लिसलिसेपन में लिथड़े

पटवारियों-मुनीमों जैसी शक्लों और दिलों वाले लोगों के

प्रेम-संदेशों की बारिश सी होने लगी I

फिर मैं एक लम्बी यात्रा पर निकल पड़ी

और नदियों-सागरों-पहाड़ों-घाटियों

रेगिस्तानों और हरियाले मैदानों में भटकने लगी I

वहाँ मैंने देखा कि जीवन पर क्या बीत रही है

और एक लम्बे समय तक प्यार को भूल

लड़ने की कूव्वत हासिल करती रही I

लड़ना ही जब जीवन हो गया

तो मैंने फिर सोचा इसी जीवन में प्यार करना

सीखने के बारे में I

पूछा मैंने पानी से, मिट्टी से, पेड़ों से, परिंदों से,

नींद से, स्मृतियों से, पूर्वज कवियों से, यायावर गायकों से

और युद्ध भरे दिनों के संगी-साथियों से

प्यार करने की कूव्वत और हुनर के बारे में

और जो कुछ भी जान पायी

उसे सहेजने और बरतने के लिए

दूर दहकते ढाक के जंगलों के भीतर गयी,

खदानों और कारखानों तक गयी

देस-देस भटकती रही

और प्यार की यह शर्त हासिल करती रही कि

अनथक अहर्निश हर उस चीज़ से नफ़रत करती रहूँ

जो मनुष्यता के ख़िलाफ़ खड़ी है !

यूँ हृदयहीन कापुरुषों-महापुरुषों से दूर होकर,

जड़ता, विस्मृति, समर्पण और सहनशीलता के विरुद्ध

जूझते हुए अविराम

प्यार को जाना-समझा आहिस्ता-आहिस्ता

विश्वासघातों और फरेबों की मारक चोटें झेलकर

चुपचाप अपनी ही गलतियों और आधे-अधूरे और

अव्यक्त प्रेमों की अकथ पीड़ा झेलते हुए,

सुलगते हुए धीरज के साथ !

(18जनवरी, 2019)

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