Wednesday, December 05, 2018


(एक साहित्यिक मित्र हैं, आये दिन मेरे लेखन की "अव्यावहारिक दुस्साहसिकता", मेरे "झगड़ालूपन", मुँहफटपन और "अतिक्रान्तिकारिता" को लेकर नाराज़ रहते हैं और शिकायतें करते रहते हैं I अभी पिछली पोस्ट में मैंने एक कविता डाली थी, तब फिर उन्होंने मुझे इसी किस्म के कुछ सुझाव दिए और लताड़ लगाई I मैंने उन्हें जो जवाब दिया है उसे वे समझने की कोशिश कत्तई नहीं करेंगे, पर मैंने सोचा कि उस जवाब को सार्वजनिक कर दूँ क्योंकि यह बहुतों की शिकायतों और सवालों को मेरा जवाब है ! )

"माफ़ करें ! मेरा जीवन ही गद्यात्मक है I मेरे जीवन की जो भी काव्यात्मकता है, वह गद्यात्मक है I इसमें प्यार, करुणा, मित्रता, दुःख, और उल्लास की अन्तःसलिलाएँ हैं, लेकिन संतोष और गतिहीन सुख की अंधी बावड़ियाँ नहीं हैं I मैं एक असंतुष्ट प्रेतात्मा हूँ I उसमें न लोकगीतों की अतीतजीवी लिसलिसी लोकरागात्मकता है, न छायावाद की वायवीयता, न ही नवगीतों जैसी आत्मनिष्ठ रूमानियत ! आज का समाज और जीवन गद्यात्मक है क्योंकि इसमें एलियनेशन और वस्तुकरण है I मेरे जीवन की गद्यात्मकता इसके आगे की है I
मेरा जीवन गद्यात्मक है क्योंकि वह भविष्य-स्वप्नों का रूमानी संधान मात्र न होकर उनकी व्यावाहारिक परियोजना पर काम करने की एक कोशिश है I वर्तमान जीवन की शुष्क-नीरस अलगावग्रस्त गद्यात्मकता का प्रतिकार मैं अतीत की भावुकतावादी दलदली ज़मीन पर खड़ा होकर नहीं करती, बल्कि और उन्नत स्तर की, भविष्य की गद्यात्मक काव्यात्मकता से करती हूँ Iइसीलिये, किसी लोकरागी, या निम्न-बुर्जुआ भावुकतावादी भारतीय मानस को मैं शुष्क, झगड़ालू, बहसू या मीनमेखी लग सकती हूँ I पर मैं क्या करूँ ? ज़माने की लहर और समाज के चलन के हिसाब से ढलना मेरी फितरत नहीं I मेरे हृदय के तल तक पहुँचने और मेरी भावनाओं की उत्ताल तरंगों के साथ बहने के लिए आपको 'ब्रह्मराक्षस का सजल-उर-शिष्य' बनना होगा, पंखों में लगे दुनियादारी और "सद्गृहस्थपन" के कीचड़ को धोना होगा, मस्त-मलंग यायावर बनना होगा, अतीत की जगह भविष्य की और देखना सीखना होगा, बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाते चले जाने वाला बंजारा बनना होगा और विद्रोह करने का साहस करना होगा I आपकी शुभेच्छाओं की मैं कद्र करती हूँ, पर आपकी अपेक्षाओं की कसौटी पर मैं कभी खरी नहीं उतर सकती I कृपया अन्यथा न लें और मुझे क्षमा करें !"

(30नवम्‍बर,2018)

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