स्त्रियों की प्रेम कविताओं के बारे में एक अप्रिय, कटु यथार्थवादी कविता
आम तौर पर स्त्रियाँ जब प्रेम कविताएँ लिखती हैं
तो ज़्यादातर, वे भावुकता से लबरेज
और बनावटी होती हैं क्योंकि
उनमें वे सारी बातें नहीं होती हैं
जो वे लिख देना चाहती हैं और
लिखकर हल्का हो लेना चाहती हैं |
इसलिए प्रेम कविताएँ लिखने के बाद
उनका मन और भारी, और उदास हो जाता है |
स्त्रियाँ जब अपने किसी सच्चे प्रेमी के लिए भी
प्रेम कविताएँ लिखती हैं
तो उसमें सारी बातें सच्ची-सच्ची नहीं लिखतीं
चाहते हुए भी |
शायद वे जिससे प्रेम करती हैं
उसे दुखी नहीं करना चाहतीं
या शायद वे उसपर भी पूरा भरोसा नहीं करतीं,
या शायद वे अपनी ज़िंदगी की कुरूपताओं को
किसी से बाँटकर
और अधिक असुरक्षित नहीं होना चाहतीं,
या फिर शायद, वे स्वयं कपट करके किसी अदृश्य
अत्याचारी से बदला लेना चाहती हैं |
स्त्रियाँ कई बार इस डर से सच्ची प्रेम कविताएँ नहीं लिखतीं
कि वे एक लंबा शोकगीत बनने लगती हैं,
और उन्हें लगता है कि दिग-दिगन्त तक गूँजने लगेगा
एक दीर्घ विलाप |
स्त्रियाँ चाहती हैं कि एक ऐसी
सच्ची प्रेम कविता लिखें
जिसमें न सिर्फ़ मन की सारी आवारगियों, फंतासियों,
उड़ानों का, अपनी सारी बेवफ़ाइयों और पश्चातापों का
बेबाक़ बयान हो, बल्कि यह भी कि
बचपन से लेकर जवान होने तक
कब, कहाँ-कहाँ, अँधेरे में, भीड़ में , अकेले में,
सन्नाटे में, शोर में, सफ़र में, घर में, रात में, दिन में,
किस-किस ने उन्हें दबाया, दबोचा, रगड़ा, कुचला,
घसीटा, छीला, पीसा, कूटा और पछींटा
और कितनों ने कितनी-कितनी बार उन्हें ठगा, धोखा दिया,
उल्लू बनाया, चरका पढ़ाया, सबक सिखाया और
ब्लैकमेल किया |
स्त्रियाँ प्रेम कविताएँ लिखकर शरीर से भी ज़्यादा
अपनी आत्मा के सारे दाग़-धब्बों को दिखलाना चाहती हैं
लेकिन इसके विनाशकारी नतीज़ों को सोचकर
सम्हल जाती हैं |
स्त्रियाँ अक्सर प्रेम कविताएँ भावनाओं के
बेइख्तियार इजहार के तौर पर नहीं
बल्कि जीने के एक सबब, या औज़ार के तौर पर लिखती हैं |
और जो गज़ब की प्रेम कविताएँ लिखने का
दावा करती कलम-धुरंधर हैं
वे दरअसल किसी और चीज़ को प्रेम समझती हैं
और ताउम्र इसी मुगालते में जीती चली जाती हैं |
कभी अपवादस्वरूप, कुछ समृद्ध-कुलीन स्त्रियाँ
शक्तिशाली हो जाती हैं,
वे प्रेम करने के लिए एक या एकाधिक
पुरुष पाल लेती हैं या फिर खुद ही ढेरों पुरुष
उन्हें प्रेम करने को लालायित हो जाते हैं |
वे स्त्रियाँ भी उम्र का एक खासा हिस्सा
वहम में तमाम करने के बाद
प्रेम की वंचना में बची सारी उम्र तड़पती रहती हैं
और उसकी भरपाई प्रसिद्धि, सत्ता और
सम्भोग से करती रहती हैं |
स्त्रियाँ सच्ची प्रेम कविताएँ लिखने के लिए
यथार्थवादी होना चाहती हैं,
लेकिन जीने की शर्तें उन्हें या तो छायावादी बना देती हैं
या फिर उत्तर-आधुनिक |
जो न मिले उसे उत्तर-सत्य कहकर
थोड़ी राहत तो मिलती ही है !
सोचती हूँ, एस.एम.एस. और व्हाट्सअप ने
जैसे अंत कर दिया प्रेम-पत्रों का,
अब आवे कोई ऐसी नयी लहर
कि नक़ली प्रेम कविताओं का पाखण्ड भी मिटे
और दुनिया की वे कुरूपताएँ थोड़ी और
नंगी हो जाएँ जिन्हें मिटा दिया जाना है
प्रेम कविताओं में सच्चाई और प्रेम को
प्रवेश दिलाने के लिए |
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(27-28 नवम्बर, 2018)
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