Monday, December 17, 2018


चुप्पी का रंग हरा था।
रोशनी भीगी हुई थी।
जून का महीना एक तितली की तरह
काँप-थरथरा रहा था।

-- पाब्लो नेरूदा

(हंड्रेड लव सॉनेट्स)



***


मैं उन सड़कों पर नहीं चल सकता

जो किसी जगह नहीं पहुँचतीं

और उस सच पर जो बदल गया हो

कौन सा दिन है वह जिसे रोक लिया गया है

भटकती हुई रोशनी बनने के लिए

अँधेरे में जुगनू की तरह

.-- पाब्लो नेरूदा


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(पाब्लो नेरूदा ने अपनी इस कविता में जिन "नैसर्गिक" कवियों की जमकर खबर ली है, वे हमारे देश में बहुतायत में मौजूद हैं और उनमें राग दरबारी गाने वाले पद-पीठ-पुरस्कार-प्रतिष्ठा- लोलुप बहुतेरे लाल कलगी वाले मुर्गे भी शामिल हैं जो बात-बात में नेरूदा का नाम भी लेते रहते हैं I बहरहाल, इनको शर्म तो आने से रही, आप यह कविता पढ़िए "पूँजीवादी पनीर में पड़े गंदे कीड़ों" के बारे में !)

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नैसर्गिक कविगण

-- पाब्लो नेरूदा

.तुमने किया क्या है

तुम बुद्धिजीवियों ने ?

तुम रहस्यवादियों ने ?

तुम नक़ली अस्तित्ववादी जादूगरों ने ?

तुम गुम्बद पर चमकते अतियथार्थवादी पिलपिले लोगों ने ?

तुम पूँजीवादी पनीर में पड़े गंदे कीड़ों ने ?

.

तुमने किया क्या है

दुखों के साम्राज्य के साथ ?

ठोकर मारकर गुलामी में धकेल दिए गए

काले लोगों के साथ ?

गन्दगी में डुबो दिए गए

इन दिमागों के साथ ?

इन कठिन और कुचली हुई

जिंदगियों के साथ ?

.

तुमने कुछ नहीं किया

पलायन के सिवा

तुमने महज कूड़े का ढेर बेंचा

तुम सिर्फ़ ख़ूबसूरत ज़ुल्फ़ों

कायरतापूर्ण विचारों

टूटे हुए नाखूनों

"शुद्ध सौन्दर्य"

और चमत्कार के चक्कर में

पड़े रहे

तुम्हारी रचनाएँ

बेचारे और भयभीत लोगों की

रचनाएँ रहीं

अपनी आँखों को

देखने से रोकने की कोशिश करती रचनाएँ

नाज़ुक शिष्यों को बचाने की

कोशिश करती रचनाएँ

ताकि तुम अपनी रोटी कमा सको

गंदे जूठन की एक तश्तरी

जो मालिक तुम्हारे लिए

फेंक देते हैं

बिना देखे कि

चट्टानें बरबादी के कगार पर हैं

बिना कुछ भी बचाने की कोशिश किये

क़ब्रगाहों में पड़े

फूलों के जोड़ों से भी अधिक ऊँचे हो तुम

पानी बरसता है

गुम्बदों पर पड़े

तुम निर्जीव सड़े हुए फूलों पर

.(अनुवाद : रामकृष्ण पाण्डेय )

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