उस मॉल के बीचोबीच जो एक विशाल हॉल था
उसके बीचोबीच खड़े होकर
मैंने चीखकर कहा," सुनो लोगो, मेरी स्मृतियाँ, छायाएँ, सपने और मंसूबे
न बिकने के लिए हैं, न शोकेसों में सजने के लिए हैं !"
फिर कई लोग मुझे किनारे ले जाकर कहते रहे,
"कभी इरादा बदल जाये तो बताना !"
वे खरीद-फरोख्त के अनुभवी लोग थे
बाज़ार की रग-रग से वाक़िफ़ !
बाज़ार की रग-रग से वाक़िफ़ लोग ख़ुद को
इंसान की रग-रग से भी वाक़िफ़ समझते हैं
पर हमेशा नहीं तो कम से कम कई बार वे
ग़लत भी साबित होते हैं !
(26नवम्बर,2018)
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