Sunday, November 25, 2018

ये बुर्जुआ नारीवादी और उत्तर-मार्क्सवादी नारीवादी वीरांगनाएँ मुँह से अजदहे की तरह चाहे जितना भी आग उगल लें, अपनी फूहड़ "साहसिक" कविताओं-कहानियों से चाहे जितनी वाहवाही बटोर लें, वे किसी न किसी रूप में स्त्री मुक्ति के व्यापक सरोकारों और आन्दोलन के मुद्दों को स्त्री-यौनिकता की मुक्ति में 'रिड्यूस' कर देती हैं I ईव एन्सलर के धारावाहिक नाटक 'वेजाइना मोनोलौग्स' की नक़ल पर हमारे यहाँ भी साहित्य में विस्फोटक "साहसिकता" के बिंदास नमूने पेश किये जाने लगे हैं !

या तो जानबूझकर, या नाजानकारी के चलते, या पूर्वाग्रहों के कारण, सभी कोटि की अग्निवर्षी नारीवादी कागज़ी "दहशतगर्द" स्त्री-दासता की सामाजिक-ऐतिहासिक जड़ों की पूरीतरह अनदेखी करती हैं और इसीलिये इस ऐतिहासिक प्रश्न का ऐतिहासिक समाधान प्रस्तुत कर पाने में विफल रहती हैं I वे सिर्फ़ समस्या को खंडित रूप में देख पाती हैं, या मात्र उसके लक्षणों-अभिव्यक्तियों की शिनाख्त कर पाती हैं I

दार्शनिक सारवस्तु की दृष्टि से ये वीर बालिकाएँ या तो अराजकतावादी होती हैं, या फिर अकर्मक विमर्शवादी ! ये किसिम-किसिम की बुर्जुआ नारीवादी प्रजातियाँ गहरे कुलीनतावादी पूर्वाग्रहों से लबालब भरी होती हैं, प्रतीकात्मक आन्दोलनों से आगे जाने में इनकी नानी मरती है, और बहुसंख्यक आम मेहनतक़श स्त्रियों की समस्याएँ और सवाल तो इनके एजेंडा पर कहीं होते ही नहीं ! बहुत ऐसी भी हैं जो ज़मीनी काम का दम भरती हैं, पर उनकी सारी सरगर्मियाँ एन.जी.ओ.पंथी सुधारवाद की टुकड़खोरी की चौहद्दी में महदूद रहती हैं I

जो संशोधनवादी वामपंथी हैं, वे स्त्री-मुक्ति के मुद्दों पर, या तमाम पुरुष-स्वामित्ववादी प्रतिक्रियावादी रूढ़ियों-मूल्यों-संस्थाओं के विरुद्ध कोई आमूलगामी रेडिकल सामाजिक आन्दोलन खड़ा करने की या तो ज़रूरत नहीं समझते, या फिर अपनी यथास्थितिवादी और सुधारवादी मानसिकता के कारण इतनी कूव्वत ही नहीं रखते I जो बिखरी हुई क्रांतिकारी वाम शक्तियाँ हैं, वे अपनी वैचारिक कमजोरी और कठमुल्लावाद के चलते स्त्री-मुक्ति के प्रश्न पर 'क्लास-रिडक्शनिस्ट' अप्रोच अपनाती हैं I कुछ नव-मार्क्सवादी हैं, जो जब स्त्री-प्रश्न पर बात करते हैं तो वफादारी तो मार्क्सवाद के साथ दिखाते हैं, लेकिन रातें 'आइडेंटिटी पॉलिटिक्स' के बिस्तर में बिताते हैं !

आप कहेंगे कि मैं सिर्फ़ समस्याएँ ही गिनाये चली जा रही हूँ ! बात ठीक है, लेकिन समस्याओं की सटीक पहचान से ही समाधान की दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता खुलता है ! समाधान और सही राह के बारे में तफ़सील से बातचीत की ज़रूरत है I वह फिर कभी ...

(23नवम्‍बर,2018)

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