Sunday, November 25, 2018


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जैसाकि कहा जाता है –
"मामला सुलझ गया है"
प्रेम की नाव
जीवन से टकराकर टूट गई।
मैंने जीवन का सारा ऋण चुका दिया है
और अब ऋण-सूची में कुछ भी बाक़ी नहीं रहा है
आपसी दर्द
मुसीबतें
और नाराज़गियाँ

सब ख़ुश रहें (और यह जीवन जीएँ)
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-- व्लदीमिर मयाकोवस्की
( अनुवाद : अनिल जनविजय )

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( ये मयाकोवस्की की अंतिम कविता की कुछ पंक्तियाँ हैं जो उन्होंने 14 अप्रैल 1930 को ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या करने से दो दिन पहले यानी 12 अप्रैल को लिखी थी।हिन्दी में मयाकोवस्की की अंतिम कविता के कई अनुवाद देखने में आये हैं, पर यह अनुवाद अभी-अभी मास्कोवासी रूसी-हिन्दी विद्वान और हिन्दी कवि Anil Janvijay ने किया है और Shashi Sharma की 22 नवम्बर की एक पोस्ट के कमेन्ट बॉक्स में दिया है I जाहिर है कि इस अनुवाद को सर्वाधिक प्रामाणिक मानकर भरोसा किया जा सकता है I वसीयत और अंतिम सन्देशनुमा इस कविता में मयाकोवस्की कहते हैं कि उनकी मृत्यु के लिए कोई दोषी नहीं, और यह कोई तरीका नहीं, और वह किसी दूसरे को ऐसा करने की सलाह नहीं देते, पर उनके सामने और कोई रास्ता नहीं था ! तो इसतरह, एक आपवादिक काव्य-प्रतिभा ने एक आपवादिक क़दम उठाकर आने जीवन का अंत कर लिया ! आश्चर्य कि उन्हीं मयाकोवस्की ने कुछ ही दिनों पहले आत्महत्या करने वाले अपने कवि-मित्र सेर्गेई येस्येनिन को एक कविता लिखकर प्यार भारी झिड़की दी थी ! जो भी हो, मयाकोवस्की की आत्महत्या एक रहस्य नहीं, बल्कि एक दार्शनिक गुत्थी है ! आम तौर पर हम आत्महत्या का विरोध करते हैं, लेकिन क्या असामान्य प्रतिभाओं को इस मामले में उनके विशेष निजी फैसले के साथ अकेला छोड़ दिया जाना चाहिए ? सोचें ज़रा ... )

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