Saturday, October 13, 2018

me too...


काश ! 'Me Too' मुहिम में काम वाली बाइयों, नर्सों-मिडवाइफों, कारखानों-खेतों में काम करने वाली मज़दूर औरतों और आम घरेलू औरतों की भी आवाज़ सुनाई देती ! काश घरों में होने वाले यौन-उत्पीड़न के बारे में भी आम घरों की औरतें खुलकर कुछ बोलतीं !

यह एक काल्पनिक स्थिति है, पर सोचिये कैसा तूफ़ान उठता और कैसा आनंद आता ! हमारी "गौरवशाली" भारतीय संस्कृति के तो परखचे ही उड़ जाते और मर्यादा और नैतिकता के तमाम पहरेदार, पण्डित-पुरोहित और मुल्ले, संघी और मुसंघी श्मशान में भटकते कुत्तों और सियारों की तरह आसमान की ओर मुँह उठाकर रोने लगते !

(13अक्‍टूबर,2018)


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काल्हि एगो बहिनी कहीं कि तुम्हरे पास भी तो कवनो अइसा अनुभव होगा कि 'मी टू' में बयान करके एकाध सरीफ बदमास का चेहरा से सराफत का नकाब नोच सको !
हम बोलीं कि बहिनी, हम तो तुरंते हिसाब-किताब साफ़ कर लेंइंत हैं ! आठ-दस बरिस तो दूर, आठ-दस महीना भी बकाया-उधार नाहीं राखित हैं ! हम कहित हैं, तुरंते मुँहवे नोच लो, आठ-दस बारिस बाद नकाब नोचने का जरूरते नाहीं पड़ेगा I जो पिछवाड़ा सहलाने का कोसिस करे ओका पिछवाड़ा मार जुत्ता लाल कर देव , लार टपकाय के ताके तो अँखिये कोंच देव I मतलब ई कि तुरंते निपट लेव -- देन एंड देयर... काहे का उधार-पाइंच ! एक बार की बाति है कि एक ठो बुद्धीजीबी अंकलजी बोले कि हमका तुमसे कुछ बिसेस भावनात्मक हो गया है ! हम अगलहीं दिन उनका घरे जाके आंटीजी को बता दीं कि आंटीजी, आपका भविस्य तो गया चूल्हा-भाड़ में, काहेसेकि अंकलजी को हमसे कुछ-कुछ होने लगा है ! बस, हमरा काम घरे में आंटिएजी के हाथ संपन्न हो गया ! अब बड़े-बुजुर्ग का कुछ तो ख़याल राखना होता है न !
(13अक्‍टूबर,2018)






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