Friday, October 12, 2018

me too...

भाई, महानगर की और सोशल मीडिया की और एन.जी.ओ. जगत की नारीवादी वीरांगनाएँ बुरा न मानें ! मैं me too मुहिम की विरोधी नहीं हूँ ! पर जिन लोगों को लग रहा है कि स्त्रियाँ अगर अपने विरुद्ध होने वाले किसी यौन अपराध के विरुद्ध चुप्पी तोड़कर बोलने लगेगीं तो सबकुछ ठीक हो जाएगा, वे भारी मुगालते में जी रही हैं !
पहली बात, यह एक अच्छा कदम है, पर यह प्रतिरोध की शुरुआत भी नहीं है, भूमिका मात्र है ! बेशक उस संकोच भरी चुप्पी को तोड़ देना होगा जिसका लम्पट "शरीफजादे" लाभ उठाते हैं ! पर यह भी तो सोचिये, कार्यस्थलों पर नियमित अनेक रूपों में होने वाले यौन-उत्पीड़न के विरुद्ध मज़दूर औरतें अगर आवाज़ उठाती भी हैं तो उनकी कोई सुनवाई नहीं होती और कोई फर्क नहीं पड़ता ! सोशल मीडिया के स्पेस में उन आवाजों का कोई हिस्सा नहीं होता। यानी, me too का कुलीनतावादी संकरा दायरा तो बनता ही है। दूसरी बात, प्रतिरोध के इस फॉर्म की सीमाओं को न समझा जाये, तो यह भी एक चौंक-चमत्कार भरा प्रतीकवाद ही बनकर रह जाएगा।
me too मुहिम की भारतीय लहर के दौरान मीडिया, राजनीति और फिल्म जगत के जो चेहरे बेनकाब हो रहे हैं, वे अभी चुप्पी साधे हुए हैं ! पर आप देख लीजिएगा, कुछ समय बीतते ही वे अपने सामाजिक रुतबे और बेशर्म हँसी के साथ फिर आपके बीच होंगे और सार्वजनिक मंचों पर नैतिकता आदि पर भाषण ठेलते भी नज़र आ सकते हैं ! मीडिया के दफ्तरों और फ़िल्मी दुनिया में यौन-उत्पीडन कुछ देर को कम भले ही हो जाये, पर फिर बदस्तूर जारी हो जाएगा ! ज़रूरत इस बात की है कि संघर्ष के निम्न और प्रचारपरक रूपों के साथ-साथ स्त्री-विरोधी सांस्थानिक हिंसा और सांस्थानिक यौन उत्पीडन के रूपों के विरुद्ध संघर्ष की एक दीर्घकालिक रणनीति पर काम किया जाये, और इस आन्दोलन के दायरे को आम मध्यवर्गीय और मेहनतक़श स्त्रियों तक पहुँचाया जाये !
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पुनश्च, एक फुटकल बात !
छद्म-वामियों और एन.जी.ओ.पंथियों में भी लम्पटों की कमी नहीं, पर me too के दौरान अबतक जो चेहरे नंगे हुए हैं, उन सबकी संघी राजनीति या दक्षिणपंथी राजनीति के किसी न किसी शेड से करीबी बनाती है।
वैसे जो सब कुछ सामने आ रहा है वह चौंकाने वाला ज़रा भी नहीं है ! बहुतेरे ऐसे भी हैं जिन्हें मसालेदार मनोरंजन का नित-नया मसाला मिल रहा है I पर चलो यह भी ठीक ही है कि जिसे सभी स्त्रियाँ जानती-भोगती थीं, पर बोलती नहीं थीं, उनपर सार्वजनिक मंचों पर बात हो रही है!

(12अक्‍टूबर,2018)

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