Tuesday, October 09, 2018


अंधराष्ट्रवाद का और धार्मिक कट्टरपंथियों के धर्म-आधारित राष्ट्रवाद का अपना अन्तर्निहित तर्क होता है ! जिस तर्क से भारतीय गौरव की दुहाई देते हुए किसी पड़ोसी देश को निशाना बनाया जाता है, जिस तर्क से कश्मीर घाटी और उत्तर-पूर्व में बर्बर राजकीय दमन को औचित्यपूर्ण ठहराया जाता है, जिस तर्क से असम से कथित बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को भगाने के लिए हुंकारें भरी जाती हैं, वही तर्क जब विस्तारित होता है तो कभी मुम्बई से पुरबिहा लोग भगाए जाते थे और इनदिनों गुजरात से हिन्दीभाषी आबादी को आतंकित करके भगाया जा रहा है I स्थानीय और बाहरी -- सापेक्षिक श्रेणियां हैं ! भारत जैसे कई राष्ट्रों और राष्ट्रीयताओं वाले देश में जब पूंजीवादी संकट लोगों पर बेरोज़गारी-मंहगाई का कहर बरपा करेगा, तो अंधराष्ट्रवादी जूनून का विस्तार इस रूप में भी सामने आयेगा ही कि एक भाषा-संस्कृति वाले इलाके के लोगों को अपने इलाके में रोजी-रोजगार करने वाले दूसरी भाषा -संस्कृति के लोग 'अन्य' नज़र आने लगेंगे, उनकी रोजी-रोजगार छीनने वाले के रूप में दीखने लगेंगे I हर प्रकार की फासिस्ट राजनीति का यह तर्क और परिणति है I हिन्दीभाषी क्षेत्र के जो मध्यवर्ग के लोग और जो ग़रीब मेहनतक़श भी मोदीत्व के नशे में झूम रहे थे, उनकी आँखें गुजरात से हिंदीभाषियों के भगाए जाने की घटनाओं से खुलेंगी या नहीं, यह तो वक़्त ही बताएगा !

(9अक्‍टूबर,2018)

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