ए भाई सुभचिन्तक लोगन ! गूह क हलुवा हम नाहीं कहि सकित हैं ! एतना कडुआ ज़माना में हमके मिठबोलवा होवे के राय न देव ! हमार त भाई ईहे उसूल हौ कि अवसरबाद को अवसरबाद कहौ, कायरता को कायरता कहौ, हरामी को हरामी कहौ, कुत्ता को कुत्ता कहौ आ फासिस्ट को फासिस्ट कहौ ! हमरे जुबान को तो नीम, करेला आउर मिरचा का मिक्सचर ही भावत हौ I तोका मीठ-मीठ बोलके वजीफा-इनाम पावे के हौ तो जाव, मालिक लोग रसगुल्ला खा के कटोरी में जौन चासनी छोड़िन हैं, ओका सुडुप से पी जाव आ कटोरी चाटि जाव !
... ... हाँ नहीं तो ! राय दे-दे के अकराय मारिन हैं !
(17अक्टूबर,2018)
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