Sunday, August 05, 2018

इनदिनों एक ठो चलन खूब चल गया है




इनदिनों एक ठो चलन खूब चल गया है I लोग अपाने-अपाने देवार पर फोटू टांगता है की अलनवा-फलनवा ईउनिभारसिटी से हमरा कविता-संकलन या कहानी-संकलन पर फलनवां प्रोफ़ेसर का अंडर में ढिमकवाँ शोध-छात्र ने अइसा गज्जब लघु-शोध या शोध कर दिया है I आरे भयवा, ई शोध आ लघु- शोध की असलियत कौन नहीं जानता ! बाकी, आतममुग्धता की दवाई तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी I ई सब शोध-लघु शोध लायब्रेरी में सड -गल जाएगा, दीमक भी बहुत मजबूरी में खायेगा I साहित्य में अमर-वमर होने का कौनो स्कोप नाहीं है I महान बनने के लिए महामहिम लोग भी आजकाल जो लिखता है, उसपर कुक्कुर भी नाहीं मूतता है I आरे भाई, गोली मारो साहित्य में अमर होने की भावना को ! ज़रा लोगों की ज़िन्दगी देखो, आज के हालात देखो, और देखो की तुम्हरा लिखा-पढ़ा लोगन के कौनो काम आ सकत है कि नाहीं I पूरा समाज मुर्दाघट्टा बन जाएगा तो अपनी महान कबिता-कहानी का सियार-कुक्कुर को सुनावोगे ? गजब बुरबक हो भाई ! कि स्वारथ में अन्हराय गए हो ? बतिये नहीं घुसता है भेजे में तुम्हारे !
(24जुलाई,2018)

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