Sunday, August 05, 2018

आप अब भी सोच रहे हैं कि आपके आसपास घट रही घटनाएँ...


आप अब भी सोच रहे हैं कि आपके आसपास घट रही घटनाएँ छिटफुट हैं, ये दुर्दिन बीत जायेंगे और ज़िन्दगी फिर रेंगती-घिसटती ढर्रे पर चलने लगेगी I आप सोच रहे हैं कि बर्बर शायद आपकी बस्ती से बहुत दूर हैं, या शायद इतिहास में दफ़न हो चुके हैं I आप फिर भी बस्ती के बाहर खड़े हैं और सोच रहे हैं कि अगर बर्बरों का हमला हो ही गया तो आप क्या करेंगे ! आप शायद यह भी सोच रहे हैं कि बर्बर आपको ईमानदारी से चुनने का विकल्प देंगे और चुनाव में हारने के बाद वे आपकी बस्ती को तहस-नहस करने का इरादा छोड़कर वापस लौट जायेंगे I
लेकिन महोदय ! आप भारी मुगालते में जी रहे हैं ! आप बहुत बड़े छल और धोखे का शिकार हो चुके हैं ! जनतंत्र का चोला पहने संविधान नामक "पवित्र पुस्तक" हाथ में लिए नए ज़माने के नए बर्बर आपकी बस्तियों में कभी के प्रवेश कर चुके हैं ! उन्होंने अपने किलेबंद अड्डे बना लिए हैं और उनका खूनी खेल ज्यादा से ज्यादा खुला और खूँख्वार होता जा रहा है I
आप घुटने टेककर और रेंगकर भी इन फासिस्टों के विनाशकारी उत्पात से अपने बच्चों और परिवारों को नहीं बचा सकते I इनका हृदय-परिवर्तन किसी भी सूरत में मुमकिन नहीं ! आपको इनसे आर-पार की लड़ाई लड़नी ही होगी ! यह लड़ाई आपकी बस्ती के गली-कूचों में होगी, खेतों-कारखानों से लेकर कला-संस्कृति तक के सभी मोर्चों पर होगी I हर सूरत में लड़ने से बचने की कोशिश भी इंसान को एकदम कीड़ा माफिक बना देता है I यकीन न हो तो इन लिबरल भलेमानसों और संसदीय वामी जड़वामनों को ही देख लीजिये !

(3अगस्‍त,2018)

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