आप अब भी सोच रहे हैं कि आपके आसपास घट रही घटनाएँ छिटफुट हैं, ये दुर्दिन बीत जायेंगे और ज़िन्दगी फिर रेंगती-घिसटती ढर्रे पर चलने लगेगी I आप सोच रहे हैं कि बर्बर शायद आपकी बस्ती से बहुत दूर हैं, या शायद इतिहास में दफ़न हो चुके हैं I आप फिर भी बस्ती के बाहर खड़े हैं और सोच रहे हैं कि अगर बर्बरों का हमला हो ही गया तो आप क्या करेंगे ! आप शायद यह भी सोच रहे हैं कि बर्बर आपको ईमानदारी से चुनने का विकल्प देंगे और चुनाव में हारने के बाद वे आपकी बस्ती को तहस-नहस करने का इरादा छोड़कर वापस लौट जायेंगे I
लेकिन महोदय ! आप भारी मुगालते में जी रहे हैं ! आप बहुत बड़े छल और धोखे का शिकार हो चुके हैं ! जनतंत्र का चोला पहने संविधान नामक "पवित्र पुस्तक" हाथ में लिए नए ज़माने के नए बर्बर आपकी बस्तियों में कभी के प्रवेश कर चुके हैं ! उन्होंने अपने किलेबंद अड्डे बना लिए हैं और उनका खूनी खेल ज्यादा से ज्यादा खुला और खूँख्वार होता जा रहा है I
आप घुटने टेककर और रेंगकर भी इन फासिस्टों के विनाशकारी उत्पात से अपने बच्चों और परिवारों को नहीं बचा सकते I इनका हृदय-परिवर्तन किसी भी सूरत में मुमकिन नहीं ! आपको इनसे आर-पार की लड़ाई लड़नी ही होगी ! यह लड़ाई आपकी बस्ती के गली-कूचों में होगी, खेतों-कारखानों से लेकर कला-संस्कृति तक के सभी मोर्चों पर होगी I हर सूरत में लड़ने से बचने की कोशिश भी इंसान को एकदम कीड़ा माफिक बना देता है I यकीन न हो तो इन लिबरल भलेमानसों और संसदीय वामी जड़वामनों को ही देख लीजिये !
(3अगस्त,2018)
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