Tuesday, May 08, 2018

अरे भई प्रगतिशील, जनवादी, वामपंथी लेखक-कविगण !



अरे भई प्रगतिशील, जनवादी, वामपंथी लेखक-कविगण ! ब्रेष्ट, पाब्लो नेरूदा, नाज़िम हिकमत, क्रिस्टोफर कॉडवेल आदि-आदि के नामों की सिर्फ़ जुगाली ही करते रहेंगे या आततायी फासिस्ट सत्ताओं के विरुद्ध उनके बहादुराना संघर्षों से कुछ सीखेंगे भी ! आप अमरत्व-प्राप्ति के लिए अपने शांत-सुसज्जित साधना-कक्ष में बैठे "महान","कालजयी" कृतियाँ रचते रहेंगे, पुरस्कृत-सम्मानित होते रहेंगे,यात्रायें करते रहेंगे, बाल-बच्चों को विदेशों में व्यवस्थित करके वहाँ देशाटन और विश्राम को जाते रहेंगे, और उधर फासिस्ट पूरे देश में बर्बरता, अत्याचार और ह्त्या-बलात्कार का खेल खेलते रहेंगे I आपकी नैतिक विकलता जब बहुत जोर मारेगी तो आप सोशल मीडिया पर थोडा क्षोभ और थोड़ी आग उगल देंगे और फासिस्टों की हर जघन्य कार्रवाई के विरुद्ध मोमबत्ती और पोस्टर लेकर किसी प्रतीकात्मक अनुष्ठान में शामिल हो लेंगे I बस ! आपका सारा वामपंथ तो गांधीवादी लँगोटी का चिल्लर बनकर रह गया है I
हम बताये दे रहे हैं, इस कायरता के बावजूद आप बचेंगे नहीं I आपकी यह उम्मीद भी बेकार है कि 2019 में मोदी चुनाव हार जायेगा और सबकुछ ठीक हो जायेगा I चुनाव आयोग, न्यायपालिका, सी.बी.आई., नौकरशाही, शिक्षा-तंत्र सब फासिस्टों की जेब में हैं I वे दीमकों की तरह हर जगह घुस गए हैं I अगर भाजपा 2019 का चुनाव हार भी गयी तो पूरे देश में फासिस्टों का उत्पात जारी रहेगा I बुर्जुआ पार्टियों की कोई दूसरी सरकार भी आपका तारनहार नहीं होगी Iपूंजीवादी संकट ने पूरे समाज को फासिज्म की उर्वर नर्सरी बना डाला है I यह एक धुर-प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन है I इसे सिर्फ और सिर्फ , मज़दूर वर्ग, मेहनतक़श जनता और निम्न-मध्य वर्ग के प्रगतिशील हिस्सों का एक जुझारू, प्रगतिशील सामाजिक आन्दोलन तृणमूल स्तर से खड़ा करके ही पीछे धकेला जा सकता है I इसमें आप खुद एक अहम भूमिका निभा सकते हैं I समय निकालकर आम लोगों की बस्तियों में जाइए, उन्हें शिक्षित, जागृत और गोलबंद कीजिये, उनके बीच प्रगतिशील और सेकुलर विचारों का प्रचार कीजिये, उनके सांस्कृतिक-शैक्षिक मंडल बनाइये, उन्हें भगतसिंह, राहुल सांकृत्यायन आदि के विचारों के बारे में, मज़दूरों के संघर्षों के इतिहास और ऐतिहासिक मिशन के बारे में बताइये I कुछ भी न करने के लिए सिर्फ वाम राजनीति को कोसने, नसीहतें देने और लानतें भेजने से काम नहीं चलेगा I यह सब करते हुए बहुत चतुराई से आप अपने को किनारे कर लेते हैं I पहले अपनी ज़िम्मेदारी निभाइए, फिर सवाल उठाइये I जैसा कि राहुल सांकृत्यायन ने कहा था, यदि जनबल में विश्वास हो तो उसे संगठित करके फासिज्म का मुकाबला किया जा सकता है I और दूसरा कोई रास्ता नहीं है I खुद को मुगालते में मत रखिये I बहुत ख़तरनाक होगा I

(17अप्रैल,2018)

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