Tuesday, May 08, 2018

मार्क्स का यह उद्धरण बहुत काव्यात्मक और सारगर्भित प्रतीत होता है :
"समाज के उच्चतर आर्थिक रूप के दृष्टिकोण से भूमंडल पर अलग-अलग व्यक्तियों का निजी स्वामित्व बिलकुल वैसे ही बेतुका प्रतीत होगा कि जैसे एक व्यक्ति पर दूसरे व्यक्ति का निजी स्वामित्व I एक सारा समाज, एक सारा राष्ट्र, अथवा एक साथ विद्यमान सारे समाज भी समूचे तौर पर भूमंडल के स्वामी नहीं हैं I वे केवल उसके दखील, उसके भोगाधिकारी ही हैं, और boni patres familias ( अच्छे कुलपतियों ) की ही भाँति उन्हें उसे सुधरी हुई हालत में बाद की पीढ़ियों को सौंपना चाहिए I"
--- कार्ल मार्क्स ( पूँजी, खंड-3, अध्याय-46,पृष्ठ--686, प्रगति प्रकाशन, मास्को, 1988 संस्करण )

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