Tuesday, May 08, 2018

स्वस्थ-सच्चा प्रेम वही हो सकता है.....




स्वस्थ-सच्चा प्रेम वही हो सकता है, जो पूरीतरह स्वतन्त्रता और स्त्री-पुरुष बराबरी पर निर्भर हो I चूँकि सभी फासिस्ट स्त्रियों की स्वतन्त्रता और स्त्री-पुरुष बराबरी के घोर विरोधी होते हैं, इसलिए एक उदात्त मानवीय अनुभव के रूप में वे प्रेम के आस्वाद से अपरिचित होते हैं I उनके लिए सेक्स का पाशविक भोग और रुग्ण यौन फंतासियाँ ही सबकुछ होती हैं I सेक्स के मामले में वे पशुवत और गंभीर मनोरोगी होते हैं I हिटलर और मुसोलिनी की पार्टियों के फासिस्ट नेताओं और कैडरों के रुग्ण और बर्बर यौन जीवन के बारे में काफी कुछ लिखा गया है I संघियों की यौन-रुग्नताओं के बारे में पुराने कम्युनिस्टों और बूढ़े समाजवादियों से भी आप काफी कुछ जान सकते हैं I या हिम्मत हो तो कोई भूतपूर्व शाखावाला भी आपको काफी कुछ बता सकता है I
ये बातें मैं इसलिए कर रही हूँ कि एक रुग्ण विचारधारा के आन्तरिक और आत्मिक जगत में संक्रमण के भीषण और घृणित दुष्प्रभावों को समझा जा सके I आज कठुआ और उन्नाव और उसके बाद की कई घटनाओं के बाद जब मैं संतोष गंगवार, हेमा मालिनी, मेनका गांधी,किरण खेर आदि-आदि के बयानों को पढ़ती हूँ, तो मुझे आश्चर्य नहीं होता I यह वही पार्टी है, जिसके नेता विधान सभा में बैठकर पोर्न फिल्म देखते हैं, जिनके कई जन-प्रतिनिधियों पर बलात्कार के केस हैं, जिनका सिरमौर दिल आ जाने पर अपने सिपहसालार से एक छात्रा की जासूसी करवाता है और जिसका एक मुख्य मंत्री (योगी) बदला लेने के लिए क़ब्रों से मुस्लिम औरतों को निकालकर बलात्कार करने की बात करता है I मुझे ज़रा भी आश्चर्य नहीं है कि 'जागरण' और फासिस्टों के तमाम भोंपू मीडिया वाले कठुआ की बर्बरता को भी झुठलाने और उसपर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं I इससे भीषण सच यह है कि कई लेखक-कवि भी तमाम बेहयाई भरे तर्क देते हुए इन फासिस्ट भोम्पुओं के सजाये मंच पर जाकर 'राग दरबारी' सुना रहे हैं I यह बताता है कि 'हमारा 'ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास' कितना मनोरोगी, जनवाद-विरोधी और स्त्री-विरोधी है ! आश्चर्य मत कीजिये, फासिज्म के प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रभाव में आ चुकी स्त्रियाँ भी स्त्री-विरोधी होती हैं I वे स्त्रियों को और खुद को कुतिया जैसा पाने में चरम आनंद महसूस करती हैं I

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