Friday, April 06, 2018


और मैं सोचा करता अक्सर

और मैं सोचा करता अक्सर:
बहुत आसान शब्द काफ़ी होंगे |
जब मैं कहूँ कैसी हैं चीज़ें
हरेक का दिल चिंदी-चिंदी होगा |
कि तुम रसातल में धँस जाओगे
अगर पैर जमाये खड़े न रहे--
देख ही रहे हो यह तुम!

---बेर्टोल्ट ब्रेष्ट (1956,संभवतः अंतिम कविता )
अनुवाद: सुरेश सलिल

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