Tuesday, March 13, 2018

सच्चा यथार्थवाद वही है....




सच्चा यथार्थवाद वही है, जिसमें आशावाद है I जो यथार्थवाद सिर्फ वर्त्तमान के घुटन और सड़ांध भरे अँधेरे को देखता है, लेकिन न तो भविष्य के रोशन क्षितिज को देख पाता है और न ही वर्त्तमान के गर्भ में सुगबुगाते मुक्ति-स्वप्नों और संघर्षों को, वह भोथरा और अंधा यथार्थवाद है, जो सतह के यथार्थ को भेदकर सारभूत यथार्थ को देख ही नहीं पाता I दरअसल, वह यथार्थवाद है ही नहीं, वह प्रकृतवाद है I आभासी यथार्थ की सतह को भेदकर सारभूत यथार्थ को वही देख सकता है, जिसके पास इतिहास की गतिकी को जानने- समझने वाली वैज्ञानिक दृष्टि हो I एक संकीर्ण अनुभववादी किस्सागोई के शिल्प और रूपको एवं बिम्बों के विधान का चाहे जितना बड़ा उस्ताद हो, चाहे वह जितना भी कलात्मक चमत्कार कर लेता हो, उसका साहित्य अंततोगत्वा घोड़े की लीद ही साबित होग।

9 मार्च,2018

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