Tuesday, March 13, 2018




त्रिपुरा में चुनाव परिणाम आने के बाद दो दिनों के भीतर हिन्दुत्ववादी फासिस्टों ने वाम मोर्चा के 514 कार्यकर्ताओं पर हमले किये, लेनिन की मूर्ति को बुलडोज़र से गिरा दिया, 1539 घरों में तोड़फोड़ किया, 196 घरों को जला दिया, 134 कार्यालयों में तोड़फोड़ किया, 64 में आग लगा दिया और 208 को कब्ज़ा कर लिया I
गुजरात-2002 के बाद यह दूसरा मॉडल है I इसे 2019 तक फासिस्ट पूरे देश में फैला देना चाहते हैं I
माय डिअर पार्लियामेंट्री लेफ्टिस्ट्स एंड लिबरल्स, क्या अभी भी आप इस मुगालते में जी रहे हैं कि सूफियाना कलाम सुनाकर, गंगा-जमनी तहजीब की दुहाई देकर, मोमबत्ती जुलूस निकालकर, ज्ञापन-प्रतिवेदन देकर,क़ानून और "पवित्र" संविधान की दुहाई देकर, तराजू के "सेक्युलर" पलड़े और फासिस्ट पलड़े के बीच कूदते रहने वाले छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों और नरम केसरिया लाइन वाली कांग्रस के साथ मोर्चा बनाकर और चुनाव जीतकर आप फासिस्टों के कहर से निजात पा लेगें ? कितने क्यूट- क्यूट उल्लू हैं आप महराज ! अब कब चेतेंगे ? अरे, न्यायपालिका तो इनके बाजू की जेब में है और चुनाव आयोग पिछवाड़े की जेब में I पूरी तैयारी इस बात की है कि अगर सांप्रदायिक विभाजन, अंधराष्ट्रवादी नारों और खरीद-फरोख्त से सरकारें न बनें तो ई.वी.एम. देवी की कृपा हो जावे I ये आपको "शाकाहारी" मानकर बख्शेंगे नहीं I अरे, अब तो सडकों पर उतरिये,आमने-सामने की भिडंत कीजिये, कार्यकर्ताओं को लड़ाकू बनाइये I हमलोगों के बीच विचारधारात्मक मतभेद और संघर्ष जारी रहेंगे, वह एकदम दीगर प्लेटफ़ार्म की बात है I पर यदि आप फासिस्टों से भिडंत करने को तैयार हैं तो हम प्राणपण से आपके साथ हैं I अरे भैया, अब तो 1920-30 के दशकों के यूरोपीय इतिहास की शिक्षाओं को याद कीजिये I वह आत्मघाती हरक़त मत कीजिये जो उससमय सामाजिक जनवादियों ने किया था I यह संसदवाद, क़ानूनवाद और अर्थवाद का रास्ता जिस अंधी घाटी तक जाता है, वह दूर नहीं है I चेत जाइए, नहीं बिल्ला जायेंगे I
आपको अपना छोटा अनुभव भी विनम्रतापूर्वक बता दें I इन फासिस्ट गुंडों ने कई बार हमलोगों की पुस्तक-प्रदर्शनी वैन तोडी, शहीद मेला जैसे कई आयोजनों पर हमले किये, घुसकर हंगामा किया, छात्र मोर्चा और मज़दूर मोर्चा के साथियों से मारपीट की, फ़र्जी मुक़द्दमे दर्ज कराये I हमेशा हमलोगों ने इनका मुकाबला किया, आक्रामक प्रतिरक्षा की नीति अपनाई और लाठी-डंडे का जवाब लाठी-डंडे से दिया I ये फासिस्ट अन्दर से कायर भी होते हैं I सोचिये कि आप वर्ग-संघर्ष की बात करते हैं और आपकी कतारों से बहादुरी, जुझारूपन और कुर्बानी के जज्बे का इसकदर लोप क्यों हो गया है ! इसके पीछे आपकी राजनीतिक लाइन ज़िम्मेदार है, पर हम अभी लाइन पर बहस नहीं कर रहे हैं I हम तो बस इतना कह रहे हैं कि हालात पर सोचिये, आरामतलबी और आभिजात्य छोडिये, कम से कम पुराने रेडिकल बुर्जुआओं जितना तो लड़ाकूपन दिखाइये I तथाकथित बड़ी पार्टी होने की अहम्मन्यता और श्रेष्ठता-बोध से मुक्ति पाइए I इतनी बड़ी-बड़ी यूनियनें होने की डींगें हांकते हैं और क्या हो रहा है ? कुछ हज़ार मज़दूरों के भी फासिस्ट-विरोधी लड़ाकू दस्ते तैयार नहीं हैं I यह अर्थवाद का दीमक तो आपने ही पैठाया है मज़दूर आन्दोलन के भीतर ! आपही ने तो मज़दूरों को अराजनीतिक बनाया है ! अब वह अराजनीतिक मज़दूर भी यदि सिर्फ आसन्न आर्थिक स्वार्थ के लिए लड़ता है, जाति-धरम पर बंट जाता है और कमल पर बटन दबाता है और उसके विमानवीकृत, विघटित चेतना वाले हिस्से के भीतर से फासिस्टों की गुंडा-फ़ौज में भरती होती है, तो आश्चर्य की क्या बात है I यह तो इतिहास अपने को दुहरा रहा है I फासिज्म के धुर-प्रतिक्रियावादी पेटी-बुर्जुआ सामाजिक आन्दोलन के बरक्स तृणमूल स्तर से मेहनतक़श जनता और प्रगतिशील मध्य वर्ग का जुझारू सामाजिक आन्दोलन संगठित करने के बारे में कभी आपने सोचा तक नहीं I क्यों ? क्या जवाब है इसका आपके पास ? आपको यह तो सोचना ही होगा कि त्रिपुरा में जब इतने बड़े पैमाने पर आपके कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे थे, घरों और कार्यालयों को जलाया जा रहा था, तो आपके कार्यकर्ताओं ने जुझारू प्रतिरोध क्यों नहीं किया, एक भी जगह फासिस्ट गुंडों को उन्होंने दौडाया और पीटा क्यों नहीं ? कथनी में मार्क्स-लेनिन और करनी में गान्ही बाबा ! और गान्ही बाबा भी कह गए हैं कि यदि कायरता और हिंसा में चुनना हो तो हिंसा को चुनना श्रेयस्कर होगा !
खैर छोडिये इन बातों को I जीना है तो लड़ना सीखिए I अगर लड़ेंगे नहीं तो फासिस्ट आपको ज़मीन के नीचे दफन कर देंगे और फिर आपकी हड्डियों को निकालकर कहेंगे --- देखो, ये बातबहादुर, कायर संसदमार्गी कम्युनिस्टों की हड्डियाँ हैं, देखो !

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