Tuesday, February 13, 2018

जूतों पर एक काव्यात्मक विमर्श

जूतों पर एक काव्यात्मक विमर्श


( पूर्व-कथन -- कुछ दोस्तों ने कहा कि राजनीति और
विचारधारा छोड़ कुछ दूसरे विषयों पर भी
कुछ गप-शप किया करो कभी-कभी I
सो मैं सोचती हूँ इससमय कि
जूतों को लेकर की जाएँ कुछ बातें ! )


*
जूते यात्राओं से कभी थकते नहीं I
धरती नापते हुए
उनका जीवन घिसता रहता है I
जूते कभी शिकायत नहीं करते
बीहड़ रास्तों की I

*
यात्राओं के अलावा
जूते पसंद करते हैं
कमीने और घटिया लोगों के
सिरों और पीठों पर बरसना I
पर जूते आज़ाद नहीं होते I
दुनिया के सबसे घटिया लोग
सबसे सुन्दर जूते पहनते हैं
और आम लोगों को रौंदते हुए
चलते हैं I
खदेड़े जाने पर वे जूते छोड़कर भागते हैं I
जूते बेक़रारी से
उस दिन का इंतज़ार करते हैं I

*
सबसे अभागे और उदास होते हैं
पूरी ज़िन्दगी एक ही राह
चलते रहने वालों के जूते,
ताउम्र घर से दफ़्तर
दफ़्तर से घर की दूरी
तय करते रहने वाले जूते I
दिवंगत महापुरुषों के जूतों के
जीवन का सबसे बुरा दिन
तब आता है जब कोई कूपमंडूक
उनमें घुसकर श्रद्धापूर्वक
सो जाता है I

*
तोल्स्तोय अपनी मर्ज़ी से पहनते थे
गँवई किसानों जैसे जूते
और युवा गोर्की को मुफ़लिसी के दिनों में
यहाँ-वहाँ भटकते हुए
सबसे अधिक जिन चीज़ों की
चिंता करनी पड़ती थी
उनमें उनके सस्ते जूते भी शामिल थे I
अलास्का की बर्फ़ ढँकी वादियों में
शायद अभी भी कहीं दबे पड़े होंगे
जैक लंडन के छोड़े हुए स्नो-बूट I
तस्वीरों में मौजूद प्रेमचंद का
फटा हुआ जूता आज भी गवाही देता है
एक लेखक के साहस और
ईमानदारी के पक्ष में I

*
जूतों के जीवन पर सोचने के लिए
ऐसे समाज में लोगों के पास
भला कैसे समय होगा
जहाँ लोग अपने जीवन के बारे में भी
कुछ सोच नहीं पाते और इतिहास से
कुछ भी सीख नहीं पाते I
मुझे लगता है, इसतरह कविता में जूतों को लाकर
मैं कोई क़र्ज़ उतार रही हूँ
या एक किस्म का
कृतज्ञता-ज्ञापन कर रही हूँ
और साथ ही, कविता को मामूलीपन का
यशस्वी मुकुट पहना रही हूँ I

*
जूते युद्ध का मैदान कभी न छोड़ने वाले
योद्धा के समान होते हैं I
कहीं गली में, या पार्क में, या कूड़े के ढेर पर पड़े
एक अकेले जूते के पास बताने को
एक पूरा इतिहास होता है
और कई रोचक यात्रा-वृत्तांत I
कुत्ते उसमें सूँघते हैं
शायद विस्मृत जीवन की कोई गंध
और उससे खेलते हैं ।
नुक्कड़ का बूढ़ा मोची
उसे उठा ले जाता है
और उसके अलग-अलग हिस्सों को
दूसरे घायल जूतों की मरम्मत में
खर्च कर देता है ।

*
( उत्तर-कथन -- तो देखिये नागरिको, बातें अगर
जूतों पर भी हो
तो आ ही जायेंगे आपके विचार
जीवन, समय और समाज के बारे में,
बशर्ते कि आप सोचने और महसूस करने की क्षमता
परित्यक्त जूतों की तरह
कहीं छोड़ न आये हों ।
और हालात अगर ऐसे ही बने रहे
तो वह दिन दूर नहीं जब
राजनीति पर आपको
जूते, छड़ी,झोला,चश्मा, घड़ी
या किसी और छोटी-मोटी चीज़ के बहाने
बात करनी पड़े
और फिर भी आप की सुरक्षा की
कोई गारंटी न हो। )

-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी
(10 फरवरी, 2018)



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