Tuesday, February 13, 2018

एक कुहरा पारभासी



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हवा
कुहरा
पारभासी
रोशनी नीली
बरसती जा रही है
जग रहा है
वासना का
व्यग्र वैभव ,
यह ह्रदय का ताप
वाष्पित कर रहा है
अश्रु को या स्वेद को ?
हम नमक की डली हैं
ले चलो हमको उठाकर I

--- कात्यायनी
(2006)

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