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सीधी-सी बात
शक्ति होती है मौन ( पेड़ कहते हैं मुझसे )
और गहराई भी ( कहती हैं जड़ें )
और पवित्रता भी ( कहता है अन्न )
पेड़ ने कभी नहीं कहा :
'मैं सबसे ऊँचा हूँ !'
जड़ ने कभी नहीं कहा :
'मैं बेहद गहराई से आयी हूँ !'
और रोटी कभी नहीं बोली :
'दुनिया में क्या है मुझसे अच्छा !'
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भौतिकी
प्रेम हमारे रक्त के पेड़ को
सराबोर कर देता है वनस्पति -रस की तरह
और हमारे चरम भौतिक आनंद के बीज से
अर्क की तरह खींचता है अपनी विलक्षण गंध
समुद्र पूरी तरह चला आता है हमारे भीतर
और भूख से व्याकुल रात
आत्मा अपनी सीध से बाहर जाती हुई , और
दो घंटियाँ तुम्हारे भीतर हड्डियों में बजती हैं
और कुछ शेष नहीं रहता सिर्फ़ मेरी देह पर
तुम्हारी देह का भार , रिक्त हुआ दूसरा समय .
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अनुवाद : मंगलेश डबराल
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