तर्क को कमान में रखकर स्वस्थ बहस करने की संस्कृति हिन्दी के बौद्धिक समाज में है ही नहीं । बहस को प्रायः उखाड़-पछाड़ या द्वंद्वयुद्ध के रूप में लिया जाता है या बहस में अपनाई गई अवस्थितियों के पीछे वैज्ञानिक समझ और प्रतिबद्धता से इतर कुछ व्यक्तिगत या अंतर-वैयक्तिक उपादान काम करते रहते हैं । इसका मूल कारण एक तो यह है कि हमारे समाज के ताने-बाने में ही जनवाद नहीं है । दूसरा बुनियादी कारण शायद यह है कि हमारा बौद्धिक समाज जितना जनविमुख है , उतना ही तर्कविमुख भी है और हद दर्जे का अवसरवादी, कैरियरवादी, खुड़पेंची और घमंडी है ।
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- मेरी प्रिय कविताएं: क्षितिज पर जलती मशालें दण्डद्वीप से दिखती हुई
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Friday, February 16, 2018
तर्क को कमान में रखकर ......
तर्क को कमान में रखकर स्वस्थ बहस करने की संस्कृति हिन्दी के बौद्धिक समाज में है ही नहीं । बहस को प्रायः उखाड़-पछाड़ या द्वंद्वयुद्ध के रूप में लिया जाता है या बहस में अपनाई गई अवस्थितियों के पीछे वैज्ञानिक समझ और प्रतिबद्धता से इतर कुछ व्यक्तिगत या अंतर-वैयक्तिक उपादान काम करते रहते हैं । इसका मूल कारण एक तो यह है कि हमारे समाज के ताने-बाने में ही जनवाद नहीं है । दूसरा बुनियादी कारण शायद यह है कि हमारा बौद्धिक समाज जितना जनविमुख है , उतना ही तर्कविमुख भी है और हद दर्जे का अवसरवादी, कैरियरवादी, खुड़पेंची और घमंडी है ।
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