Sunday, December 17, 2017

कुछ निरर्थक काम जैसे कि ...


कुछ निरर्थक काम जैसे कि ...
(1)

सार्थक के साथ हरदम
करती रहती हूँ कुछ निरर्थक भी ।
अज्ञात के रहस्यों को जानने की
कोशिश करते हुए
स्वयं ही कुछ रहस्य रचती रहती हूँ ।
जैसे दे ही दूँ एक मिसाल, कि
निजी डायरियाँ भी लिखती हूँ
छिपाकर पूरी दुनिया से
और उन्हें कहीं दबा देती हूँ
कभी सुदूर रेगिस्तान में
रेत के किसी टीले के नीचे,
तो कभी किसी ग्लेशिअर के पास
या खोद कर गाड़ देती हूँ
उत्तर-पूर्व के किसी दुर्गम वर्षा-वन में ।

मेरे मरने के बहुत दिनों बाद, सदियों बाद,
यदि मिलेंगी किसी को वे डायरियाँ
तो पैग़म्बरों, क़ातिलों, नायकों, कवियों,
लकड़हारों, संगीत-निर्माताओं, गोताखोरों,
चिंतकों,सब्ज़ीफ़रोशों, न्यायाधीशों, प्रेमियों,
गली के शोहदों, रंगसाज़ों, पागलों, प्रोफ़ेसरों
और न जाने कितने लोगों के बारे में
रहस्यमय, या आश्चर्यजनक, या विस्फोटक
या अबूझ जानकारियाँ देंगी
पर वे जानकारियाँ तब
इतनी पुरानी हो चुकी रहेंगी कि
बस कोई ऐतिहासिक उपन्यास लिखने के
काम आ सकेंगी ।

उनमें मेरे भी वे सभी राज होंगे
जिन्हें जानने के लिए मरते रहे
मेरे शुभचिंतक और मेरे दुश्मन
और जिनके बारे में मेरे दोस्तों ने
कभी कुछ नहीं पूछा ।
उनमें मेरी तमाम अधूरी यात्राओं, खंडित स्वप्नों,
पलायनों, पाखंडों, अधूरे और विफल और अव्यक्त प्रेमों,
कुछ गुप्त कारगुजारियों,
विश्वासघातों और विचलनों और कुछ थोड़े से दुखों
और बहुत सी उदासियों के बारे में मुख़्तसर में
कुछ टीपें मिलेंगी
लेखों-कविताओं के ढेरों कच्चे मसविदों के बीच ।

लेकिन तब, युगों बाद, कोई मेरा
बिगाड़ भी क्या पायेगा ?
और सबसे बड़ी बात तो यह कि
जिन्हें मिलेंगी भी ये डायरियाँ,
उनमें लिखी बातों का उनके लिए
न कोई मतलब होगा, न ही कोई अहमियत ।
हाँ, उनमें से अगर कोई कवि हुआ,
या कोई उदास प्रेमी,
तो बात और है ।
**



 (2)                             
सबसे अधिक रहस्यमय है ।
साफ़ पारदर्शी जल ।
रहस्यमय है फेंफडों में घुसती हवा,। 
पेड़ों की सीटियाँ । 
पहाड़ों की प्रतिध्वनियाँ ।
बच्चे की हँसी ।
निश्छल दोस्तियाँ ।
और असंभव लेकिन मानवीय चाहतें ।
 रहस्य ही बनाता है जीवन को दिलचस्प और नया । 
रहस्य है नग्न आत्माओं की एक झलक पा लेने की उम्मीद ।
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(साल्वाडोर डाली की पेन्टिंग 'भूदृश्य में सोती स्त्री'1931)          


                                  

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