Tuesday, December 19, 2017

सन्नाटे में गिरेगा शब्द और धरती पर एक आँसू



एक शब्द

आँसू की तरह उमड़ता है

और गले में अटकता है ।

रात निश्शब्द ढलती है ।

अकेला निशाचर पक्षी भी चुप है ।

सहसा मैं अच्छे दिनों को

याद करता हूँ ।

बचपन के चित्र

चलचित्र-से आते हैं सामने ।

शायद सुखद, शांत, आत्मीय मृत्यु

आ रही है किसी के निकट

चीज़ों के निकट

या कि मेरे ही किसी व्यक्तित्व के निकट ।

कुछ अचानक

छिटककर सन्नाटे में गिरेगा

और शोर मचाता हुआ

आख़िरी बार

चकनाचूर हो जायेगा

बिना किसी आत्मग्लानि के

पर फिर भी

कोई एक आँसू बच रहेगा

पश्चाताप का,

गले में अटका हुआ एक शब्द ।

--- शशि प्रकाश
(27 सितम्बर, 1996)

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