Wednesday, December 13, 2017


स्वप्न

एक दिन अचानक
दहक उठेंगे पर्वत
सदियों के सोये संकल्प जागेंगे
विस्मृति के अँधेरे से
बाहर आ जायेंगी अजेय आत्माएँ
मुक्त होंगी कल्पनाएँ
सृजन के अग्निपक्षी निर्बन्ध
उड़ेंगे उन्मुक्त आकाश में.

(जुलाई, 1995)

-- शशि प्रकाश

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