Thursday, May 18, 2017





अदोल्फो सांचेस वाज़्क्वेज़ (1915-2011) ने स्पेनी गृहयुद्ध में गणतंत्रवादियों की ओर से हिस्सा लिया था और फ़्रांकों की जीत के बाद अन्य हजारों बुद्धिजीवियों की तरह स्पेन छोड़कर मेक्सिको चले गए थे | दर्शन और सौंदर्यशास्त्र के क्षेत्र में उनका काम बहुत ही महत्वपूर्ण है | वाज़्क्वेज़ के अनुसार मार्क्स की प्रसिद्ध प्रारम्भिक कृति "1844 की आर्थिक एवं दार्शनिक पांडुलिपियाँ" में निहित सौंदर्य-विषयक बुनियादी विचारों को निम्नांकित शब्दों में रखा जा सकता है:
"(1) आत्म और वस्तु के बीच (सौंदर्य के नियमों के अनुसार रचना करने या "यथार्थ को कलात्मक ढंग से आत्मसात करने" की प्रक्रिया में) एक विशिष्ट संबंध होता है जिसमें कच्चे पदार्थ को एक सुनिर्धारित रूप देकर आत्मवस्तु में तब्दील कर दिया जाता है | इसका परिणाम एक नई वस्तु या सौंदर्यपरक वस्तु के रूप में सामने आता है, जिसमें आत्म की मानवीय समृद्धि वस्तुरूपांतरित या प्रकट होती है |
(2) इस आत्म-वस्तु संबंध या सौंदर्यपरक संबंध का एक सामाजिक स्वरूप होता है | यह सामाजिक-ऐतिहासिक आधार पर , और श्रम के जरिये प्रकृति का मानवीकरण करने तथा मानवीय सत्ता का वस्तुरूपांतरण करने की प्रक्रिया में विकसित होता है |
(3) यथार्थ को सौंदर्यपरक तरीके से आत्मसात करने की क्रिया एक श्रेष्ठ मानवीय श्रम के रूप में अपनी सबसे विकसित मंज़िल पर पहुँचती है, जो मूर्त ऐंद्रिय वस्तु में अपनी सारभूत शक्तियों को रूपांतरित, व्यक्त और प्रकट करने की कलाकार की आंतरिक ज़रूरत को संतुष्ट करना चाहती है | श्रम के उत्पादों की संकीर्ण भौतिक उपयोगिता से अपने को मुक्त करके कला मानवीय सत्ता के वस्तुरूपांतरण और स्थापन की क्रियाओं को उच्चतर स्तर पर उठा ले जाती है, जो उन उत्पादों में सीमित स्तर पर ही मूर्त रूप ले पाती है |
(4) एक सामाजिक संबंध होने के नाते मनुष्य और यथार्थ के बीच का सौंदर्यपरक संबंध वस्तु का ही नहीं बल्कि आत्म का भी निर्माण करता है | अपने मानवीय, सौंदर्यपरक सारतत्व में सौंदर्यपरक वस्तु सामाजिक प्राणियों के लिए ही होती है |
(5) पूंजीवादी उत्पादन के आम नियम के अधीन होने पर, अर्थात कलाकृति के माल बन जाने पर, कला अलगाव का शिकार हो जाती है | "
--- (सौंदर्यबोध के स्रोत और स्वरूप के बारे में मार्क्स के विचार )

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