Thursday, May 18, 2017




और मैं सोचा करता अक्सर
और मैं सोचा करता अक्सर:
बहुत आसान शब्द काफ़ी होंगे |
जब मैं कहूँ कैसी हैं चीज़ें
हरेक का दिल चिंदी-चिंदी होगा |
कि तुम रसातल में धँस जाओगे
अगर पैर जमाये खड़े न रहे--
देख ही रहे हो यह तुम!

---बेर्टोल्ट ब्रेष्ट (1956,संभवतः अंतिम कविता )
अनुवाद: सुरेश सलिल

No comments:

Post a Comment